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मध्यप्रदेश

शुरू हुई वह जत्रा, जिसकी इंदौरियों को रहती है वर्षभर प्रतीक्षा

इंदौर। इंदौरियों को मराठी व्यंजनों के जिस महोत्सव अर्थात जत्रा का इंतजार पूरे वर्षभर रहता है, वह जत्रा शुक्रवार से आरंभ हो गई यहां महाराष्ट्रीयन व्यंजन का पारंपरिक जायका और उसे परोसने के घरेलू अंदाज ने आनंद दोगुना कर दिया है। स्वाद और संस्कृति की यह जत्रा तीन दिनों तक चलेगी। महाराष्ट्रियन परिवारों में जो व्यंजन सुबह के नाश्ता से लेकर रात के भोजन तक बनाए जाते हैं, वे व्यंजन यहां शहरवासियों के लिए प्रस्तुत हैं।

ये व्यंजन अपनी गुणवत्ता के कारण सेहत के फिक्रमंदों को तो रास आते ही हैं, साथ ही स्वाद के शौकीनों को भी लुभाते हैं। तीखे, खट्टे, मीठे, ठंडे, गर्म हर तरह के व्यंजनों की दावत लिए यह जत्रा पोद्दार प्लाजा में आरंभ हुई है। इस बार जत्रा में भी मोटे अनाज का जायका अन्य पकवानों पर हावी होता नजर आ रहा है। तीखे और मीठे व्यंजनों के बीच ऐसे व्यंजन भी यहां परोसे जा रहे हैं, जो स्वाद के साथ सेहत से भी सरोकार लिए हुए हैं।

मराठी सोशल ग्रुप द्वारा आयोजित इस वार्षिक उत्सव का औपचारिक उद्घाटन शुक्रवार शाम को हुआ, किंतु इंदौरियों ने तो यहां दोपहर से ही दावत-ए-देसी व्यंजनों का लुत्फ उठाना शुरू कर दिया था। फिर चाहे मराठी भाषी हों या गैर मराठी भाषी, लोग उत्साह से यहां पहुंचे। इस बार यहां 48 स्टालों पर करीब 45 अलग-अलग तरह के व्यंजनों का लुत्फ लोग ले रहे हैं।

श्रीअन्न से मन प्रसन्न

कढ़ी फुनके : इस बार जत्रा में श्रीअन्न अर्थात मोटा अनाज से तैयार कई व्यंजन भी शामिल किए गए हैं। उन्हीं में से एक है कढ़ी फुनके, जो कि स्नेहा सालुंखे लेकर आई हैं। चवला, मूंग और चना दाल को गलाकर उसमें कुछ पिसे मसाले डाले जाते हैं। फिर इसके मुठिये बनाकर भाप में पकाया जाता है। इस पर महाराष्ट्रीयन कढ़ी डालकर गरमागरम खाया जाता है। दालों को दरदरा ही पिसा जाता है और मसालों में भी हरी मिर्च, अदरक, लहसुन का इस्तेमाल होता है।

कल्याणची भाखर ठेचा : खानदेश के इस व्यंजन के साथ दूसरा मोटे अनाज का व्यंजन है कल्याणची भाखर ठेचा। उड़द की दाल, ज्वार के आटा में गेहूं का आटा केवल इतना ही मिलाया जाता है कि उसकी रोटी बन जाए। इस रोटी को हरी मिर्च, लहसुन और टमाटर को कूटकर बनाई गई चटनी (ठेचा) के साथ खाया जाता है। यह पारंपरिक भोजन प्रियंका पाटिल परोस रही हैं।

उकरपेंडी : मोटे अनाज का एक और व्यंजन उकरपेंडी यहां है, जिसे वर्षा शेंडे लेकर आई हैं। बाफले के मोटे आटे को सेक कर तैयार होने वाले इस व्यंजन में छाछ भी होती है। मसालों के नाम पर इसमें हल्दी, हरी मिर्च, करी पत्ता, नमक, राई और प्याज शामिल होते हैं।

शाम को सजी लावणी की रंगत

जत्रा में शाम को महाराष्ट्र के कलाकारों द्वारा लावणी की प्रस्तुति दी गई। गणेश वंदना और सरस्वती वंदना के बाद कलाकारों ने बैठकर और खड़े होकर की जाने वाली लावणी प्रस्तुत की। देवयानी चंदगडकर, स्मृति बड़दे और भक्त मेस्त्री ने साथी कलाकारों के साथ प्रस्तुति दी। ‘या रावजी, अप्सरा आली, वाजले की वारा, विचार काय तुमचा, पिल्या पाणा च्या’ सहित कई गीतों पर लावणी की। कुछ पारंपरिक लावणी थी तो कुछ फिल्मों की लावणी थी, जिसका दर्शकों ने खूब आनंद लिया।

स्वाद के साथ यहां हस्तशिल्प की खरीदारी का मौका भी शहरवासियों को मिल रहा है। संस्था के सुधीर दांडेकर और राजेश शाह बताते हैं कि इस बार दिव्यांगों और वृद्धों को मुख्य द्वार से जत्रा परिसर तक लाने के लिए निश्शुल्क व्यवस्था भी की गई है।

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