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मध्यप्रदेश

12 साल के बालक ने पापा के लिए आइलवयू लिखा और फांसी लगा ली

भोपाल। 12 वर्ष के बच्चे को पढ़ाई करने के लिए बोलना मां के लिए जीवन भर के संताप का कारण बन गया। मां के काम पर जाते ही, बालक ने मां के दुपट्टे से फांसी लगा ली। खुदकुशी करने से पहले उसने घर में लगे परदे पर पेन दिल के आकार का चित्र बनाया। उस पर लिखा पापा आइ लव यू, नन्ना आई लव यू। इसके अलावा यही बात उसने दाहिने हाथ की हथेली पर भी पेन से लिखी थी। घटना रविवार दोपहर को गोविंदपुरा की अन्नानगर बस्ती में हुई। वह छठवीं में पढ़ता था।

गोविंदपुरा के एसआइ वासुदेव सविता ने बताया कि अन्ना नगर निवासी भगवत मरकाम निजी काम करते हैं। उनके दो बच्चों में बड़ा 12 वर्षीय रियांस, सेंट पिट्स स्कूल में छठवीं में पढ़ता था। रियांस की मां सीमा लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती है। रविवार सुबह भगवत अपने काम पर चला गया था। सुबह करीब 10 बजे रियांस और उसकी छोटी बहन नित्या उर्फ नन्ना घर में खेल रहे थे। काम पर जाते समय सीमा ने रियांस से खेलना बंद कर पढ़ने के लिए बोला था। इस पर बुरा सा मुंह बनाते हुए रियांस पलंग पर औधा होकर लेट गया था। मां अपने काम पर चली गई। उधर कुछ देर बाद रियांस ने बहन नित्या को कमरे से बाहर निकालकर दरवाजे की कुंडी अंदर से लगा ली थी।

मां काम से लौटी तो घटना का पता चला

दोपहर करीब दो बजे सीमा घर वापस लौटी तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था। काफी खटखटाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो उसने दरवाजे के सुराख सें अंदर झांककर देखा, तो उसकी चीख निकल गई। रियांस फांसी पर लटका हुआ था। उसने झोपड़ी के शेड में ऊपर लगे लोहे के पाइप में दुपट्टा बांधकर फांसी लगा ली थी। सीमा ने पड़ोस में रहने वाले भाई चंद्रशेखर को बुलाया। किसी तरह दरवाजा खोला गया, लेकिन रियांस की काफी पहले मौत हो चुकी थी। उसके शव का पोस्टमार्टम सोमवार को होगा।

एक्सपर्ट व्यू:- अभिभावकों को सतर्क रहने की जरूरत

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि 50 प्रतिशत मानसिक बीमारियों 14 साल की उम्र के पहले शुरू हो जाती है, और हम है कि मानने को तैयार भी नहीं होते कि बच्चों को कोई मानसिक समस्या हो सकती है। 10 से 12 साल की उम्र में बच्चे से किशोर बनने की ओर अग्रसर होते हैं, ऐसे समय में कई बदलाव होते हैं, तब अभिभावकों को सतर्क रहने की जरुरत है। अगर आपको लगता है कि पिछले कुछ महीनों में बच्चे व्यवहार में परिवर्तन है, वह लोगों से घुलने-मिलने से बच रहा है या अचानक आक्रमक हो जाता है, जिद्दी या गुमसुम होता जा रहा है तो इसे नजरअंदाज ना करें, नजर रखें और लक्षण दिखने पर मनोचिकित्सक की सलाह लें। जब हम बच्चों की मन:स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होंगे तो वे भी अपनी समस्याएं बताने मे हिचकेंगे नहीं और इस तरह हम चीजों को बिगड़ने से बचा सकेंगे।

डा. समीक्षा साहू, बाल मनोचिकित्सक, अस्सिटेंट प्रोफेसर, गांधी मेडिकल कालेज

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