रबड़ी की मिठास, केसर की रंगत और जायफल की गर्माहट बनाती है इस दूध को खास

इंदौर। सर्दी के तेवर तीखे होते जा रहे हैं। ऐसे में एक ओर जहां लोग रात को घर से निकलने में कतराते हैं, वहीं शहर के कुछ स्वाद रसिक ऐसे भी हैं जो रात 8 बजे बाद दोस्त या परिवार के साथ शहर की उन पुरानी गलियों की ओर निकल पड़ते हैं जहां रात दिन से ज्यादा गुलजार होती है। नई-पुरानी इमारतों के बीच की तंग गलियों में इन स्वाद पारखियों का मेला लगता है और खासतौर पर उस ठीये पर जहां दूध का कढ़ाव नजर आता है। इस गर्मागर्म दूध में अगर रबड़ी का स्वाद, केसर की रंगत और जायफल की गर्माहट भी शामिल हो तो फिर कहना ही क्या।
यह दुकान यहां 71 वर्ष से लगती आ रही है और आज भी यहां मिलने वाले दूध का जायका लोगों को अपने पास बुला ही लेता है। इस दूध में शकर नहीं मिलाई जाती क्योंकि शकर की पूर्ति करती है दूध में घुली रबड़ी की मिठास। जी हां, यहां कढ़ाव में उबलने वाले दूध में इसी दुकान पर बनी लच्छेदार रबड़ी भी घुटी हुई होती है।
मौसम के अनुसार मिलाते हैं केसर, जायफल और जावित्री
दुकान के संचालक रामजी गुप्ता बताते हैं इसके अलावा दूध उबालने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि मलाई की परत नहीं जमे। उबलते दूध में आने वाली मलाई को दूध में ही फेंट दिया जाता है। इससे दूध और भी गाढ़ा व स्वादिष्ट हो जाता है। सर्दी में दूध के सेवन का ग्राफ इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें मौसम का मिजाज समझते हुए केसर, जायफल और जावित्री मिलाई जाती है। इनकी न केवल तासीर गर्म होती है बल्कि स्वाद कढ़ाव के दूध के स्वाद को और भी निखार देता है।
जहां तक बात रंगत की है तो उसे केसर-पिस्ता बढ़ा देता है और इलाइची उसकी महक में सवाया इजाफा कर देती है। इस गर्मागर्म दूध को मिट्टी की सौंधी महक वाले कुल्हड़ में परोसकर जब ग्राहक के हाथ में थमाया जाता है सर्दी से कंपकपांते हाथ भी गर्मी से भर जाते हैं। तभी तो सूरज ढलने के साथ रात 2 बजे तक यहां लोगों का मजमा लगा रहता है।