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मध्यप्रदेश

Ujjain में दुनिया का ऐसा हिंदी संग्रहालय जहां पढ़ने को मिलता एक हजार वर्षों का दुर्लभ साहित्य

उज्जैन। बात जब भारत की सबसे अधिक बोली-समझी जाने वाली राजभाषा हिंदी की हो तो मध्यप्रदेश के उज्जैन और विक्रम विश्वविद्यालय का नाम आना स्वाभाविक है। क्योंकि यही वो केंद्र है जहां हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर पंडित सूर्यनारायण व्यास, डा. शिवमंगल सिंह सुमन, विष्णुश्रीधर वाकणकर, श्रीकृष्ण सरल, व्यंग्यकार शरद जोशी जैसे अनेकों विद्वानों का उदय हुआ और जिन्होंने अपने हिंदी ज्ञान के प्रकाश से समूचे विश्व को हिंदी बोलने-समझने के प्रति नतमस्तक किया।

यही काम 21वीं सदी में डा. भगवतीलाल राजपुरोहित, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, प्रोफेसर शैलेन्द्र शर्मा, चंद्रकांत देवताल, कवि अशोक भाटी, दिनेश दिग्गज और इन जैसे कई अनेक विद्वान कर रहे हैं। उज्जैन इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां दुनिया का पहला हिंदी संग्रहालय स्थापित है।

वो संग्रहालय जहां देखने-पढ़ने को एक हजार वर्षों का दुर्लभ हिंदी साहित्य उपलब्ध है। जहां हिंदी के आरंभ से लेकर शीर्ष रचनाकारों के परिचयात्मक विवरण, चित्र, हस्तलिखित रचनाएं, पोस्टर विद्यमान हैं। अब इन्हें अमर-अजर करने को संग्रहालय के संस्थापक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा इनका डिजिटलीकरण करवा रहे हैं। उनका मानना है कि हिंदी हमारी गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है।

पांच दशकों में 600 विद्यार्थियों ने की हिंदी में पीएचडी, अभी 175 कर रहे

विक्रम विश्वविद्यालय में सर्वाधिक पीएचडी हिंदी विषय में होने का दावा किया गया है। विभागीय रिपोर्ट के अनुसार विक्रम विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना सन् 1966 में हुई थी। तब से लेकर अब तक तकरीबन 600 विद्यार्थी यहां से हिंदी में पीएचडी कर चुके हैं।

वर्तमान में 27 शोध निदेशकों के निर्देशन में 175 से अधिक विद्यार्थी पीएचडी कर रहे हैं। उज्जैन के धीरेन्द्र सोलंकी और मुकेश शाह, ब्राह्मी, खरोष्ठी जैसी प्राचीन भारतीय लिपियों को पढ़ने और हिंदी में रूपांतरित करने के लिए प्रसिद्ध हैं।

इनके पहले ये काम डा. जगन्नाथ दुबे (अब दिवंगत) और डा. सीताराम दुबे (अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पदस्थ) किया करते थे। भोपाल में स्थित हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक, अशोक कड़ेल भी उज्जैन के ही हैं। वे इन दिनों गुजराती और मराठी में लिखे प्रमुख चयनित संदर्भ ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करवा रहे हैं।

यही के प्रोफेसरों ने इंजीनियरिंग कालेज का सिलेबस हिंदी में तैयार किया

मध्यप्रदेश सरकार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी माध्यम में भी कराने की शुरूआत की है। हर्षाने वाली बात ये है कि उज्जैन इंजीनियरिंग कालेज में पदस्थ डा. अप्रतुलचंद्र शुक्ला, डा. हेमंत परमार और एमआईटी के निदेशक रहे डा. विवेक बनसोड़ ने अंग्रेजी सिलेबस को हिंदी में रूपांतरित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डा. बनसोड का अभी कुछ महीने पहले देहांत हो चुका है। तीनों राज्यपाल द्वारा सम्मानित शिक्षक हैं।

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