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मेरे जीवन की कहानी है मां
गुस्सा, जिद,लड़ना झगड़ना छोड़ दिया मैंने माँ जब से तू गई,मचलना छोड़ दिया मैंने। रो लेता था गम में तेरी गोद में सर रखकर अब तो दर्द में भी सिसकना छोड़ दिया मैंने। रटता रहता था जो शब्द, अपनी जिद पूरी करने वो माँ माँ कह पैर पटकना छोड़ दिया मैंने गुस्सा,जिद …………... हँस लेता था रोज तुझे किसी बात पर चिढ़ाकर अब तो वैसे खुलकर हँसना छोड़ दिया मैंने। हो जाता था तेरी हल्की सी डाँट पर रुआँसा अब गहरी चोट पर भी बिलखना छोड़ दिया मैंने गुस्सा,जिद,.................... मिल जाती थी जो दौलत,तेरे पल्लू की गाँठ से वो उम्मीद किसी और से रखना छोड़ दिया मैंने सोचता था लौटकर आएगी तू कभी शायद थककर अब राह भी तकना छोड़ दिया मैंने गुस्सा,जिद,................ . नारायण प्रसाद तिवारी "शिक्षक" सिहोरा
