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चंबल भूमि से है भगवान परशुराम का गहरा नाता।

चंबल से भगवान परशुराम का गहरा नाता होने का दावा किया जाता है. कहा जाता है यही भगवान परशुराम ने अपनी मां रेणुका का सिर काटा था, जिसके निशान आज भी मौजूद है. तो आइए आपको बताते हैं कि कहा मौजूद है भगवान परशुराम का भव्य मंदिर. भिंड जिले के मौ कस्बे से नौ किलोमीटर दूर जमदारा गांव का नाम भगवान परशुराम के पिता जम्दगिनी ऋषि पर है. स्थानीय लोगों का मत है कि भगवान परशुराम का जन्म स्थली यही है. यहां उनकी मां रेणुका और पिता जम्दगिनी तपस्या किया करते थे. गांव में एक मंदिर है, जहां भगवान परशुराम की प्राचीन मूर्ति है.वहीं मंदिर के आंगन में प्राचीन शिवलिंग है. साथ ही एक जगह लंबी आकृति बनी हुई है, जिसे मां के सिर काटने के दौरान जो रक्त जमीन पर गिरा था उसे अविशेष के तौर पर लोग बताते है. इस मंदिर के पुजारी बालकृष्ण शर्मा बताते है कि यहां भगवान परशुराम व उनकी माता रेणुका पिता जम्दगिनी अपने परिवार समेत रहा करते थे. उनकी यहां एक कामधेनु गाय भी थी. Ads by अक्षय तृतीया पर लगती है भारी भीड़ भगवान परशुराम के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त लोग मंदिर आते हैं. साथ ही यही पूजा अर्चना करते है. गांव में आज कई ऐसे प्रमाण है जोकि मंदिर की प्राचीनता पर मुहर लगाते है. इस मंदिर में एक सुरंग है जोकि स्योढ़ा के सनकुआं घाट तक जाती है. प्राचीन काल में यहां से कुछ दूरी पर एक राजा ने बल पूर्वक ऋषि जम्दगिनी की कामधेनु गाय को छीनना चाहा था. जिससे गुस्साएं भगवान परशुराम ने उस जमीन को सात बार उलटपुलट किया था. आस पास की खुदाई करने पर ऐसे कई अविशेष जमीन के अंदर मिलते है. यह भी पढ़ें | मप्र में बनेगा ब्राह्मण कल्याण बोर्ड, जानापाव में बनाएंगे परशुराम लोक पिता के आदेश का किया था पालन शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि जम्दगिनी ऋषि के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे पुत्र भगवान परशुराम थे. ऋषि जम्दगिनी ने अपने पांच पुत्रों को बुलाया और अपनी मां को सिर धड़ से अलग करने का आदेश सबसे बड़े पुत्र रुक्मवान को दिया. इस पर उन्होंने मां का वध करने से मना कर दिया. इसी तरह से दूसरे पुत्र सुषेणु, तीसरे पुत्र वसु और चौथे पुत्र विश्वावसु ने भी इनकार कर दिया. इसके बाद पांचवें पुत्र परशुराम से कहा तो उन्होंने फरसे से मां का गला का काट दिया. तभी ऋषि जम्दगिनी ने चारों पुत्रों को पिता का आदेश पालन न करने पर स्मण शक्ति नष्ट होने और भगवान परशुराम को आशीर्वाद के तौर पर वरदान मांगने को कहा. इस पर परशुराम भगवान ने अपने पिता से तीन वरदान मांगे. पहला मां का सिर पुन जुड़ जाए और मां जिंदा हो जाएं. दूसरा वरदान में सभी भाइयों की स्मरण शक्ति लौट आए. तीसरी वरदान स्वयं के लिए अजय होने का मांगा.

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