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“अथ श्री निगम पुराण” अंधेर नगरी चौपट राजा,टका सेर भाजी

(गोपाल गुप्ता) हिन्दी साहित्य के सम्राट भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा 18 वीं शदी में लिखित नाटक" अंधेर नगरी चौपट राजा,टका सेर भाजी टका सेर खाजा" आज आधूनिक 21 वीं शदी में भी नगर पालिक निगम मुरैना में सार्थक है! जहां चपरासी से लेकर बाबू और अधिकारी सब एक जैसे हैं,चपरासी बाबू का काम कर रहे हैं तो बाबू अधिकारियों के पद पर काबिज हो चले हैं और बेचारे अधिकारी अब कहां जायें?खींसे निपोर रहे हैं!जबकि इन सबसे बास्ता रखने वाली मुरैना की जनता छोटे-छोटे मगर जरुरी काम के लिये धक्के पर धक्का खाने को मजबूर है! चारो तरफ अंधेरगर्दी और अफरा-तफरी का माहोल व्याप्त है! मगर इन सबसे दूर बेखबर सबसे बड़े साहब जब से निगम के निजाम में तैनात हुये हैं तब से मस्ती छानने में मसगूल हैं! अंधेर नगरी की स्थिति इतनी विकट और दयनीय है कि निगम के राजस्व विभाग के नाकारा व निक्कमे कारिंदो की कारगुजारियों के कारण कंगाली के दोराहे पर खड़ी निगम की संपतियों का बकाया किराया,सम्पति कर,जल कर सहित अन्य करों की बसूली नहीं हो पा रही है जो करीबन 90 करोड़ रुपये के लगभग है! नतिजन पैंसो के अभाव में सारे विकास कार्य ठप्प होकर शहर गंदगी,गड्डों और अधेंरे मे तब्दील हो गया है! जो पैसा राज्य शासन से आ भी रहा है उससे ऐसे ठैकेदारों का भुगतान किया जा रहा है जिन्होने कोई काम ही नहीं किया है उनके भुगतान दनादन किये जा रहे हैं क्योंकि जन चर्चाओं के अनुसार वे मोटा सुविधा शुल्क साहेब लोंगो के चरणों में अर्पित कर रहे हैं और जिन ठैकेदारों ने पूरी शिद्दत और ईमानदारी से काम किया है उनको कोई भुगतान नहीं किया जा रहा है क्योंकि वे मोटा कमिशन देने की स्थिति में नहीं है उनसे कहा जा रहा है कि निगम फण्ड में पैसा नहीं है! अपने लालच और निजी स्वार्थ के लिये नगर पालिक निगम को चौपट कर रहे राजस्व के कारिंदो की यह हिमाकत ही है कि अभी तक नगर पालिका के समय हुये सन् 1999-2000 के सर्वे के रजिस्टरों के अनुसार ही संपत्ति कर सहित अन्य करों की बसूली की जा रही है जो अभी हाल ही के वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा निगम क्षेत्र का जीआईएस और ड्रोन से कराये गये सर्वे से काफी कम है और केवल पुराने 39 वार्डों से ही बसूली की जा रही है जबकि नये बने वार्डों में जाकर बसूली करने का कोई प्रयास नहीं कर रहा है जो एक तरह से अपराध की श्रेणी में भीआता है!राज्य सरकार द्वारा सन् 2015 में नगर पालिका को नगर निगम तब्दील कर दिया था,तब आसपास के कई ग्राम पंचायतों को निगम में जोड़ दिया था और उनके ग्राम सचिवों को निगम कर्मी घोषित कर दिया था! सन् 2015 से लेकर अब तक जुड़ी उन पंचायतों के मुरैना शहर से सटे क्षेत्रों में सैकड़ों अवेध कालोनियां बनकर हजारों भव्य मकान व हवेलियां बन गयी हैं! मगर उन जगहों पर कोई राजस्व विभाग का कांरिदा बसूली के लिये जाने के लिये तैयार नहीं है! इसके दो कारण बताये जा रहे हैं! पहला जो इस क्षेत्र की जानकारी रखते हैं ग्राम पंचायत सचिव जो अब निगम कर्मी हैं उनमें से कईयों को मुख्य बाजार के वार्डों का प्रभारी बना दिया गया हैं और जो नये बने ग्रामिण वार्डों के प्रभारी बनाये गये हैं उनका आज तक कभी इन ग्रामिण क्षेत्रों से कोई बास्ता रहा है और न नये सर्वे के रजिस्टर लागू हुये हैं! लिहाजा अंधेर नगरी में तब्दील हुई निगम में अधेंदगर्दी का बोलबाला है, जहां झूठा,भ्रष्ट मालामाल है तो सच्चे का मूंह काला है! सबसे मजे की बात जो घोर संदेह पैदा करती है,वो ये कि खुद बड़े साहब केवल बाजारों में जहां व्यापारी वर्ग निवास व व्यापार करता है,वहां जाकर बन रहे इक्का-दुक्का नये मकानों की भवन अनुमति आदि चैक कर रहे हैं जबकि शहर से सटे नये वार्डों में बन रहे सैकड़ों भव्य व आलिशान मकान,कोठियों व हवेलियों की अनुमति चैक करने का सहास वे नहीं जुटा पा रहे हैं?

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