ब्रेकिंग
केंद्र सरकार कराऐगी जाति जनगणना PCC चीफ ने कहा, DGP का आदेश खाकी वर्दी का अपमान सांसद-विधायक को सैल्यूट करेगें पुलिस कर्मी, ये लोकतं... सीएम बोले- पाकिस्तानी नागरिकों को एमपी से जल्द बाहर करें: पुलिस अधिकारियों को अभियान चलाने के निर्दे... मंदसौर में तेज़ रफ़्तार कार कुऐ में गिरी 6 लोगों की मौत केंद्र सरकार का एक और सख्त फैसला, पाकिस्तानी हिंदुओं की चारधाम यात्रा पर रोक कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने अमित शाह को बताया शिव अवतार, बयान पर मचा बवाल, कांग्रेस-बीजेपी आमने-साम... केंद्र सरकार का बड़ा ऐलान: पाकिस्तानी हिन्दु , सिखो का वीजा रद्द नहीं होगा नवविवाहिता के साथ रेप कर हत्या, कमरे में निवस्त्र मिली लाश, जेठ पर आरोप कमरे में निवस्त्र मिली लाश,... पहलगाम हमले के बाद अमरनाथ यात्रा पर खतरा मंडराया, सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल मध्यप्रदेश में एक मई से होगे ट्रांसफर मुख्यमंत्री ने शिक्षण सत्र खत्म होने के बाद बताया तबादलों का क...
देश

उत्‍तराखंड में होली पर हंसी-ठिठोली के साथ एक-दूसरे को चिढ़ाने व गाली देने की है अनूठी परंपरा  

नैनीताल । उत्तराखंड के कुमाऊं में होली का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है। होली में हंसी-ठिठोली के साथ एक दूसरे को चिढ़ाने की भी स्वस्थ परंपरा है। काली कुमाऊं में तो चीर बंधन या होलिका स्थापना पर धार या चोटी से नीचे के समीप के गांव को सामूहिक रूप से गाली देने की भी परंपरा है। आधुनिकता के इस दौर में भी होल्यार चीर बंधन, होलिका स्थापना के दिन व होलिका दहन की रात को सामने के गांव वालों को गाली देकर परंपरा निभाते हैं। इसी दौरान होलिका दहन पर वेदांती होली गायन भी किया जाता है। बताया जाता है कि चंदराजा के समय से ही यह परंपरा है, जो आज भी जारी है।

होल्यार या ग्रामीण सामने के गांव को हंसी ठिठोली के अंदाज में इस तरह गाली देते हैं कि उन्हें न बुरा लगे और वह हंसी भी रोक नहीं पाएं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रो. भगवान सिंह बिष्ट के अनुसार यह परंपरा काली कुमाऊं या चंपावत जिले में ही है। काली कुमाऊं ही होली की संस्कृति का मूल केंद्र है। स्थान विशेष की विशेषताएं अलग-अलग होती हैं, उसकी अभिव्यक्ति भी भिन्न भिन्न रूप में होती है। बुराई के परिप्रेक्ष्य में नहीं, यह हास्य विनोद के पुट का उदाहरण है। यह बुरे भाव के साथ नहीं, बल्कि परिस्थितिवश शुरू परंपरा होगी, जो आज भी जारी है। उपले की राख का टीका लगाते हैं। होली में होलिका की स्थापना गांव के समीप धार में या चोटी में चीड़ के पेड़ से विधि-विधान से किया जाता है।
चीड़ के पेड़ को इस तरह लाया जाता है कि उसका ऊपरी या निचला सिरा एक साथ धरती को स्पर्श न करे। होलिका स्वरूप पेड़ को गड्ढा बनाकर स्थापित किया जाता है और उसके चारों ओर उपले रखे जाते हैं। अक्षत-फूल के साथ ही भेंट चढ़ाई जाती है। छलड़ी पर रात को पूजा-अर्चना के बाद ही होलिका दहन होता है और टीका पर सुबह उपले की राख को तेल में भिगोकर टीका लगाया जाता है।

Related Articles

Back to top button