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वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो ठंड है भाई ठंड है, यह बड़ी प्रचंड है,,
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो ठंड है भाई ठंड है, यह बड़ी प्रचंड है,, कक्ष शीत से भरा, है बर्फ से ढकी धरा,, यत्न कर संभाल लो, ये समय निकाल लो,, वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।। चाय का मजा रहे, पकोड़ा दल सजा रहे,, मुंह कभी थके नहीं, रजाई भी हटे नहीं,, लाख मिन्नतें करे, स्नान से बचे रहो,, वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो एक प्रण किए हुए, है कंबलों को लिए,, तुम निडर डटो वहीं, पलंग से हटो नहीं,, मम्मी की लताड़ हो, या डैडी की दहाड़ हो,, वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो शब्दों के बाण से, या बेलनों की मार से,, पत्नी जी भड़क उठे, या चप्पलें खड़क उठे,, लानतें हज़ार हों, धमकियां या प्यार हो,, वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो बधिर बन सुनो नहीं, कर्म से डिगो नहीं,, प्रातः हो कि रात हो, संग हो न साथ हो,, पलंग पर पड़े रहो, तुम वहीं डटे रहो,, वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो रजाईधारी सिंह 'दिनभर'
