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गाय की “वेदना” कहने को तो गौ माता हूँ।
(राशि सिंह गौर शिवपुरी ) अपने ही मालिक के घर में "अनजान" हूँ। न खाने का "ठिकाना" न रहने का "बसेरा"। ठंड में ठिठुरन की "मौहताज" हूँ। फिर भी "कलयुग" मैं "गौमाता" की परिभाषा हूँ। दूध न दूँ तो खाने के लिए "मौहताज"" हूँ। समय पर घर न आऊँ तो अपने बच्चे के प्यार में "मौहताज" हूँ। साहब मेरे न सही मेरे "बच्चों" की सोचिए। मैं तो चली जाऊँगी, लेकिन मेरे बच्चों को ही "पहचान दिला" दीजिये। मेरे मालिक का नाम तो बता दीजिए जो न खाना देता,न जगह देता बस दूध निकाल मुझे सड़क पर छोड़ देता साहिब। थोड़ा अहसान "गौमाता" न सही समझो पर एक मूक जानवर समझ ही मेरी "वेदना" को समझो साहिब। - राशि सिंह गौर
