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दतिया में स्थित रतनगढ़ वाली माता के मंदिर के बारे में बहुत ऐतिहासिक है। इस मंदिर का लोहा मराठा सम्राट वीर छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी माना है

दतिया में स्थित रतनगढ़ वाली माता के मंदिर के बारे में बहुत ऐतिहासिक है। इस मंदिर का लोहा मराठा सम्राट वीर छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी माना है। प्रसिद्ध रतनगढ़ वाली माता मांडुलादेवी एवं कुंवर महाराज के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। यह मध्यप्रदेश के दतिया जिले से 63 किमी दूर मसैंनी गांव के पास स्थित बीहड इलाका होने की वजह से यह मंदिर घने जंगलों में पड़ता है तथा इसके बगल में सिंध नदी बहती है यहां अपनी मन्नताओं की पूर्ति के लिये लोग दूर-दूर से पैदल चलकर तथा लेट-लेटकर भी आते हैं। यहां पर एक मंदिर रतनगढ़ वाली माता तथा दूसरा उनके भाई कुंवर जी महाराज है। naidunia रतनगढ माता मंदिर का इतिहास बात लगभग 400 वर्ष पुरानी है जब मुस्लिम तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी का जुल्म ढहाने का सिलसिला जोरों पर था तभी खिलजी ने अपनी बद नियत के चलते सेंवढा से रतनगढ़ आने वाला पानी बंद कर दिया था तो रतनसिंह की बेटी मांडूला व उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव जी ने अल्लादीन खिलजी के फैसले का कड़ा विरोध किया इसी विरोध के चलते अलाउद्दीन खिलजी ने वर्तमान मंदिर रतनगढ़ वाली माता का इतिहास परिसर में बने किले पर आक्रमण कर दिया जो कि राजा रतन सिंह बेटी मांडुला को नागवार गुजरा राजा रतनसिंह की बेटी मांडुला बहुत सुन्दर थी। उन मुस्लिम आक्रांताओं की बुरी नजर थी इसी बुरी नजर के साथ खिलजी की सेना ने महल पर आक्रमण किया था। मुस्लिम आक्रमणकारियों की बुरी नजर से बचने के लिये बहन मांडुला तथा उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव जी ने जंगल में समाधि ले ली तभी से यह मंदिर अस्तित्व में आया तथा इस मंदिर की चमत्कारिक कथायें भी बहुत हैं।

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