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क्यों किया जाता है जनेऊ संस्कार, जानिए क्या है इसका महत्व और लाभ

इंदौर। “जनेऊ संस्कार” को सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पवित्र संस्कार युवा लड़कों को दीक्षित का प्रतीक है। यह 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है, इसे लोग उपनयन संस्कार या जनेऊ संस्कार भी कहते हैं। इस दसवें संस्कार के दौरान, बच्चे के शरीर के चारों ओर एक पवित्र धागा बांधा जाता है, जो उसके किशोरावस्था में प्रवेश का प्रतीक है।

जनेऊ संस्कार कब किया जाता है?

जनेऊ संस्कार 8 से 16 वर्ष की आयु के बीच किया जाता है। कुछ लोग ऐसा शादी से पहले भी करवाते हैं। इसे लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, आमतौर पर ऐसा किशोरावस्था में पहुंचने से पहले किया जाता है। यह एक अनुभवी पुजारी द्वारा किया जाता है। जनेऊ बाएं कंधे पर और दाईं बांह के नीचे पहना जाता है।

उपनयन संस्कार का महत्व

सनातन धर्म में जनेऊ का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि इसे पहनने से बच्चे को ज्ञान प्राप्त होता है और वह जीवन भर नैतिक मूल्यों को बनाए रखता है। जहां तक ​​उपनयन संस्कार की बात है, तो यह भी कहा गया है कि जनेऊ पहनने और इसके नियमों का पालन करने से बच्चों में अनुशासन का संचार भी होता है। इससे जुड़े कुछ पवित्र नियमों का पालन करना किशोरों को सिखाया जाता है।

जनेऊ धारण करने के लाभ

सनातन धर्म के अनुसार, उपनयन नकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों के विरुद्ध रक्षा का एक कवच है। इसमें मौजूद तीन धागे मां सरस्वती, मां पार्वती और मां लक्ष्मी का प्रतीक हैं। कहा जाता है कि ‘जनेऊधारी’ हर तरह की अशुद्धियों से सुरक्षित रहते हैं। इस जनेऊ के माध्यम से जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह शिक्षा और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद करता है।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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