अरबों रुपये खर्च, फिर भी शिप्रा नदी की शुद्धता है उज्जैन का चुनावी मुद्दा

उज्जैन। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी एक बार फिर विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनने जा रही है। वजह, कई सरकारी घोषणाओं एवं अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी शिप्रा का जल स्वच्छ न होना और किनारों के संरक्षण, संवर्धन की बातें कागजों तक सिमटकर रह जाना है। कांग्रेस बीते विधानसभा चुनाव में अपने वचन पत्र में इसे शामिल कर चुकी है और इस बार भी तैयारी है।
शिवराज ले चुके हैं संकल्प
इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शिप्रा शुद्धीकरण का संकल्प ले चुके हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में शिप्रा का जल डी ग्रेड का है। वजह, इसके प्रतिबंधित क्षेत्र में बढ़ता अतिक्रमण और इंदौर के सीवेज युक्त नालों का प्रदूषित पानी कान्ह नदी के रूप में उज्जैन आकर मिलना भी है।
कांग्रेस ने भी किए थे कई वादे
पिछले दो विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव, महापौर चुनाव में भी कांग्रेस ने अपने वचन पत्र और भाजपा ने अपने दृष्टि पत्र में शिप्रा नदी को लेकर कई वादे किए थे। इन वादों के परिणामस्वरूप शिप्रा को सदानीरा और स्वच्छ बनाने के लिए भाजपा सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। पहले वर्ष 2014 में 432 करोड़ रुपये खर्च कर शिप्रा को नर्मदा नदी से जोड़ने का ऐतिहासिक काम किया। प्राकृतिक प्रवाह से पानी छोड़ने से उद्देश्य की पूर्ति न होने पर साल 2019 में 139 करोड़ रुपये खर्च कर इंदौर के गांव मुंडला दोस्तदार स्थित पंपिंग स्टेशन से उज्जैन के त्रिवेणी क्षेत्र तक 66.17 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछवा दी।
पानी का रास्ता बदलने को पाइप लाइन बिछवाई
इसके पहले साल 2016 में शिप्रा के नहान क्षेत्र (त्रिवेणी से कालियादेह महल तक) में कान्ह का प्रदूषित पानी मिलने से रोकने को 95 करोड़ रुपये खर्च कर पानी का रास्ता बदलने को पाइप लाइन बिछवाई। साल 2018 में उज्जैन, उन्हेल, नागदा के लोगों की पेयजल एवं औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 1856 करोड़ रुपये की नर्मदा-शिप्रा बहुउद्देशीय योजना का क्रियान्वयन शुरू कराया। उज्जैन नगर निगम ने भी अपने स्तर पर त्रिवेणी घाट और राम घाट पर नदी का पानी स्वच्छ रखने को करोड़ों रुपये फूंके। इन सबके बावजूद न शिप्रा प्रवाहमान हुई, न पानी स्वच्छ हुआ।
यह भी जानिए
साल 2018 में चुनाव प्रचार करने उज्जैन आए कांग्रेस महासचिव रहे राहुल गांधी ने दशहरा मैदान पर बोतल में भरा शिप्रा का पानी लोगों को दिखा कहा था कि “शिप्रा नदी के पानी को अगर कोई मंत्री पी ले तो वो बेहोश हो जाएगा”।
शिप्रा की जल शुद्धि के लिए सिंहस्थ 2016 के पहले और बाद में धरना प्रदर्शन किया था। इसके बाद पिछले वर्ष 598 करोड़ रुपये की क्लोज डक्ट कान्ह डायवर्टशन योजना बनी मगर वो अब तक क्रियान्वित नहीं हुई। वर्ष 2017 में भाजपा से उज्जैन दक्षिण के विधायक रहे, अब उच्च शिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव ने नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना को विफल करार दिया था। उज्जैन उत्तर के विधायक पारस जैन ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की बात कही थी।