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अतीक के अतीत से भविष्य की राह की खोज! “कुलदीप सिंह सेंगर की कलम से।
ग्वालियर -- आतंकी की कोई जाति और कोई धर्म नहीं होता! वो केवल अपराध जगत का अपराधी है! इसी रास्ते से राजनीति की बुलंदियों को पाने वाला रोल मॉडल होता है! जो अशिक्षित, गरीब और बेरोजगार युवाओं को भी अक्षम होने के बावजूद भविष्य के सुनहरे सपने दिखता है!और अल्प समय मे जनबल से धनबली और फिर देश के लोकतांत्रिक प्रणाली में नेतृत्व की सम्भावनावों को जन्म देता है! ऐसा वो संविधान की लोकतांत्रिक ब्यवस्था के तहत राजनीति के सर्वोच्च पदों तक पहुंच कर युवाओं को एक रास्ता सुझाता है। ●उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर का रहने वाला अतीक अहमद अपराध जगत से धनकुबेर बनकर राजनीतिक बुलन्दियों को छूने वाला ऐसा ही आतंकी था, जो अपराध और आतंक की डिग्री ले कर भविष्य में राजनीतिक बुलन्दियों को छूने की अभिलाषा रखने वाले युवावों का प्रेरणा श्रोत बन बैठता है। यद्यपि 22-23 वर्ष के 3 सिरफिरे नवयुवकों ने अतीक के आतंक की इतिश्री कर दी!किंतु ये आश्चर्य नहीं कि निकट भविष्य में यही तीनो युवा भी आतंक के पर्याय बनकर धनकुबेरों और विधायक,सांसद, मंत्री आदि बन कर स्वयं को समाज सेवी बताने लगें!..क्योंकि वर्तमान राजनीति में ऐसे युवाओं को लेने के लिए लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां पलक पाँवड़े बिछाए रहतीं हैं। ◆ चूँकि उमेशपाल हत्याकांड के बाद से ही अतीक अहमद और उनके बेटे तथा गुर्गों से उत्तर प्रदेश का माहौल गरमाया है, धड़ाधड़ हुए एनकाउंटर ने वैसे ही राजनीतिक माहौल गरमा दिया था,और ऐसे गर्म माहौल में 3 युवाओं द्वारा अतीक अहमद और उसके भाई के पुलिस कस्टडी में हत्या ने और आग में घी डालने का काम किया है। हम दिब्य दृष्टि नहीं रखते, किन्तु सामाजिक, राजनीतिक और पुलसिया हथकंडों का अनुभव जरूर रखते हैं। इस लिए ये सुनियोजित हत्या तो है ही! जो इन तीन युवाओं ने अंजाम दिया है! कारण क्या था?ये तहक़ीक़ात के बाद पता चलेगा, किन्तु अभी सच ये है कि एक आतंक की इतिश्री हो कर दूसरे की बुनियाद तैयार हो रही है। ● ज्ञात हो कि यूपी में एक समय में अतीक अहमद का खौफ था. अतीक अहमद ऊपर 101 केस दर्ज हैं. इसके साथ ही उनके भाई अशरफ के ऊपर 52 केस दर्ज हैं. अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन के ऊपर 4 केस दर्ज हैं. यही नहीं अतीक अहमद के तीनों बेटे के ऊपर भी केस दर्ज हैं. अतीक के बेटे अली पर 6 केस, उमर पर 2 केस और असद पर 1 केस दर्ज है. इन्ही डिग्रियों ने उसे सियासत में चमका दिया! साल 1989 में निर्दलीय विधायक चुने जाने को बाद अतीक अहमद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो लगातार 5 बार विधायक चुना गया. अतीक पहली बार इलाहाबाद पश्चिमी से विधायक चुना गया. इसके बाद अतीक ने साल 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और जीत हासिल की. साल 1996 में अतीक अहमद ने विधानसभा का चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और फिर से विधायक चुना गया. लेकिन जल्द ही समाजवादी पार्टी से उसकी दूरियां बढ़ने लगी. अतीक ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ दिया और साल 1999 में अपना दल में शामिल हो गया. अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा. लेकिन हार का सामना करना पड़ा. साल 2002 में अपना दल ने अतीक को इलाहाबाद पश्चिमी से चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में अतीक अहमद को फिर से जीत हासिल हुई. साल 2003 में यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी. तो अतीक समाजवादी हो गया. साल 2004 में फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. ◆ साल 2014 लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद को श्रावस्ती से चुनाव लड़ाया गया. लेकिन इस बार हार का सामना करना पड़ा. साल 2019 में अतीक अहमद ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.एक खूंखार अपराधी को राजनीति की इन बुलंदियों को छूता देख अशिक्षित, गरीब, बेरोजगार युवाओं के मन मे कैसे न इन बुलन्दियों को छूने की ललक जगे ?..संभवतः उसकी और उसके भाई की हत्या के पीछे भी युवाओं में अपराध के माध्यम से राजनीति में किस्मत आजमाने की भावना ने जन्म लिया हो ?और उन्होंने अपना नाम कमाने के लिए अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या का प्लान बना कर उसे कार्यरूप में बदल दिया हो ? ●राजनीति के अपराधीकरण के अनेक कारण हैं, इनमे १- राष्ट्रीय चरित्र का पतन. २-गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी. ३-अपराधिक तत्वों का समाज में दबदबा व स्वीकार्यता.४-दलीय राजनीति व सत्ता प्राप्ति की अत्यधिक राजनीतिक लालसा. ५- पुलिस, राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों व अपराधियों में परस्पर अनैतिक सांठ गाँठ.६-चुनावी राजनीति पर बाह्य तत्वों का प्रभाव.७- राष्ट्रीयता की भावना का अभाव. ८- न्यायिक प्रणाली की मूलभूत खामियाँ भौतिकवादी प्रवृति.९- कानूनों को प्रभावशाली रूप से लागू न करने की व्यवस्था.१०- राजनेताओं व राजनीतिक दलों द्वारा साधनों की पवित्रता में विश्वास न करना.११- न्यायिक प्रणाली की मूलभूत खामियाँ निर्वाचन प्रणाली की खामियाँ.१२- शासन की क्षमता और गुणवत्ता में भारी गिरावट.१३- धन बल व बाहुबल का राजनीति का मिश्रण.१४-निष्पक्ष, ईमानदार व राष्ट्रहितों के प्रति कटिबद्ध नेतृत्व का अभाव. इस प्रकार जबतक राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर सख्त रोक नही लगाई जाती! तो वह दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र अलोकतंत्र में बदल जायेगा, देश मे अराजकता का माहौल होगा! और संविधान किसी कोने में बैठे अपनी जान की सुरक्षा के लिए बेताब होगा।.
