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क्या फेरबदल कर पाएंगे शिवराज ?

मध्यप्रदेश में भाजपा की जुगाड़ से बनी सरकार चला रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या 19 फरवरी को अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर पाएंगे ? चौहान 23 मार्च 2020 से जिस टीम के साथ सरकार चला रहे हैं ,उसके तमाम मंत्री नाकाम साबित हो चुके हैं और उन्हें बदला जाना बहुत जरूरी हो गया है .लेकिन पार्टी के भीतर और बाहर के अन्तरविरोध लगातार मुख्यमंत्री के रास्ते की बाधा बने हुए हैं . मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान सबसे लम्बी पारी खेलने वाले मुख्यमंत्री बन जाते यदि 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें खारिज न किया होता .शिवराज सिंह चौहान की एक दशक से ज्यादा पुरानी सरकार को कांग्रेस की तत्कालीन त्रयी ने हरा दिया था. उस चुनाव में मुकाबला अंत में शिवराज बनाम महाराज हो गया था .किस्मत का खेल देखिये की जिन महाराज की वजह से शिवराज की सरकार गयी थी उन्हीं महाराज की वजह से पंद्रह महीने बाद शिवराज सिंह को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा भी मिला . शिवराज सिंह चौहान किस्मत से फिर मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन वे 2005 और 2008 वाले मुख्यमंत्री नहीं रहे .उनकी सरकार में महाराज की बैशाखी लग चुकी है .कहने को शिवराज सिंह चौहान की सरकार में डबल इंजिन लगा है लेकिन है ये लंगड़ी-लूली सरकार ,और शायद इसी वजह से तीसरे साल में प्रवेश कर चुकी इस सरकार का चेहरा-मोहरा नहीं बदला जा सका .मुख्यमंत्री जी चाहकर भी अपने ढंग से अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं कर पा रहे हैं और अब उनके पास केवल कुछ महीने इस काम के लिए बचे हैं .यदि अब फेरबदल न किया गया तो फिर शायद कभी न किया जा सके . मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विवशताओं को या तो वे जानते हैं या भाजपा हाईकमान .बाक़ी सब केवल और केवल कयास लगा सकते हैं .अपने तीसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हिस्से में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जो भाजपा को फिर से सत्ता में वापस ला सके ,हाँ इतना जरूर है कि उनके लिए स्थितियां 2018 जैसी नहीं है.अब उनके सामने महाराज नहीं बूढ़े कमलनाथ और दिग्विजय सिंह हैं ..लेकिन जनता का मन किसने देखा है ? सूत्र कहते हैं कि भाजपा की चाल,चरित्र और चेहरा जनता के मन से उतरती नजर आ रही है. ये पहले मौक़ा है जब प्रदेश मंत्रिमडल में सामूहिक नेतृत्व का असर दिखाई नहीं दे रहा है. हर मंत्री आंधी के आमों की तरह लूटमार में लगा है .यद्यपि किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुया है किन्तु भ्र्ष्टाचार सतह पर देखा जा सकता है .नौकरशाही बेलगाम है .सचिवालय उजड़ चुका है ,कोई किसी की सुनने वाला नहीं है.ऐसे में भाजपा की और से की जा रही विकास यात्राओं के भी अच्छे परिणाम नहीं मिले हैं . इसके बावजूद मुख्यमंत्री कमजोर और बदनाम मंत्रियों को हटाकर उनकी जगह नए चेहरे शामिल नहीं कर पा रहे हैं. मुख्यमंत्री को कभी भाजपा हाईकमान निराश करता है तो कभी नागपुर का संघ मुख्यालय .दो तरफ से दबाब झेलरहे मुख्यमंत्री अब निरीह नजर आने लगे हैं .पिछले कुछ दिनों से उनके ऊपर मंत्रिमंडल में फेरबदल का दबाब लगातार बढ़ रहा है और कयास लगाए जाने लगे हैं कि शायद 19 फरवरी को वे कुछ नया कर दिखाएं क्योंकि उस दिन पूरा मंत्रिमंडल भोपाल में आहूत किया गया है . मत्रिमंडल में शामिल केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के सदस्यों का कामकाज बहुत ज्यादा संतोष जनक नहीं है फिर भी उन्हें रुखसती देना मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं .मंत्रिमंडल से सिंधिया समर्थकों को हटाना तो दूर मुख्यमंत्री निगम-मंडलों में भी अपनी पसंद से नियुक्तियां नहीं कर पाए .खेमों में बनती भाजपा के साथ शिवराज सिंह चौहान कैसे काम कर रहे हैं,कहना कठिन है .शिवराज सिंह चौहान में इतना साहस नहीं है कि वे सिंधिया खेमे पर हाथ डाल सकें . सिंधिया के अलावा प्रदेश में सरकार और खुद मुख्यमंत्री की छवि बिगाड़ने में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शिवराज सिंह चौहान के लिए दूसरी चुनौती हैं.उमा भारती हालांकि सिंधिया की तरह शक्तिशाली नहीं हैं किन्तु सिरदर्द तो हैं ही .उमा भारती के विरोध की वजह से ही अब तक प्रदेश की शराब नीति तय नहीं हो पायी ,क्योंकि उमा भारती प्रदेश में नशाबंदी की मांग को लेकर हाथ में ईंट-पत्थर लिए घूमती नजर आती है .हालाँकि सब जानते हैं कि उमा जी कुंठा का शिकार हैं और जानबूझकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को परेशान कर रही हैं . मध्यप्रदेश के मंत्रिमंडल में फेरबदल किये बिना विधानसभा चुनाव जीतना असम्भव है किन्तु फरबदल करना भी टेढ़ी खीर है .मंत्रिमंडल के तमाम सदस्यों ने अब पार्टी हाईकमान में अपने -अपने संरक्षक बना लिए हैं .यहां तक कि अनेक मंत्री तो शिवराज सिंह चौहान तक को खो करने की हैसियत में आ गए हैं .डॉ नरोत्तम मिश्रा और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल तो सोते -जागते मुख्यमंत्री पद का सपना देखने लगे हैं . सबका अपना प्रभामंडल है .कुल जमा अब मध्यप्रदेश में भाजपा के पक्ष में न कोई आंधी है और न तूफ़ान .आम जनता के साथ ही कर्मचारी भी भाजपा से खुश नहीं हैं .कर्मचारियों को साधने के लिए सेवानिवृत्ति की आयु सीमा में एक साल का इजाफा करने की सुगबुगाहट से ये असंतोष और बढ़ रहा है . बहरहाल भाजपा के तमाम विधायक नए अंग-वस्त्र तैयार किये बैठे हुए हैं और बेसब्री से मंत्रिमंडल में फेरबदल की प्रतीक्षा कर रहे हैं .इन विधायकों की प्रतीक्षा कब खत्म होगी कहना कठिन है ,लेकिन जितनी जल्दी ये खत्म हो उतना बेहतर है

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