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मध्यप्रदेश

संपत्ति मालिक को कानून में प्राप्त हैं कई अधिकार

इंदौर। प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय संविधान के तहत संपत्ति का अधिकार प्राप्त है। अगर उसकी संपत्ति पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कब्जा करता है या कोई दूसरा व्यक्ति संपत्ति को बेचता है या नकली दस्तावेज तैयार कर उस संपत्ति को बेचने का प्रयास करता है तो ऐसे संपत्ति मालिक को कानून में कई अधिकार प्राप्त हैं।

एडवोकेट शिवम सोनी ने बताया कि भारतीय दंड संहिता में धारा 420 में यह प्रविधान है कि किसी व्यक्ति की संपत्ति को कोई धोखाधड़ी से प्राप्त कर लेता है या कब्जा कर लेता है तो ऐसे पीड़ित व्यक्ति को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है। वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराकर आरोपित के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है। कई बार यह भी देखने में आता है कि किसी की संपत्ति को अपनी बताकर कोई व्यक्ति बेच देता है अर्थात अमानत में खयानत करता है तो धारा 406 के तहत आरोपित के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाई जा सकती है।

अमानत में खयानत का मतलब यह होता है कि आपने किसी व्यक्ति को संपत्ति उपयोग करने के लिए दी और उस व्यक्ति ने संपत्ति को अपना बताकर उसकी अफरा-तफरी कर दी। कई बार यह भी देखने में आता है कि संपत्ति के मालिक को यह पता ही नहीं होता कि उसकी संपत्ति के नकली दस्तावेज तैयार करवाकर उसकी संपत्ति बाजार में बेच दी गई है। उसे बाद में पता चलता है कि मेरी संपत्ति के नकली दस्तावेज बनाकर उसे धोखाधड़ी करते हुए बेच दिया गया है।

ऐसी स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468, 471 के तहत पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराकर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। भारतीय दंड संहिता में किसी की संपत्ति को धोखाधड़ी से प्राप्त करने को गंभीर अपराध माना गया है। यहां तक कि नकली दस्तावेज पर संपत्ति का विक्रय करना या संपत्ति अपने नाम करने पर आजीवन कारावासतक का प्रविधान है।
इन धाराओं में दर्ज केस की सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के न्यायालय द्वारा की जाती है। इन प्रकरणों में जिला एवं सत्र न्यायालयों में सुनवाई की वजह से शीघ्र सुनवाई संभव हो जाती है। एक ओर आपराधिक विधि में उपरोक्त सभी प्रविधान शामिल हैं, लेकिन सिविल प्रक्रिया संहिता में भी पीड़ित व्यक्ति अपनी संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने के लिए सिविल न्यायालयों में वाद प्रस्तुत कर सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता में भी संशोधन करके प्रकरण को शीघ्र निपटाने के लिए तीन वर्ष की समयावधि नियत की गई है। वह समय गया जब न्यायालयों में कई-कई दशक तक प्रकरण चला करते थे।

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