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हाई कोर्ट ने भूअधिग्रहण के विरुद्ध दायर याचिका जुर्माने सहित निरस्त की, बालाघाट जिले का है मामला।
जबलपुर। हाई कोर्ट ने भूअधिग्रहण के विरुद्ध दायर याचिका जुर्माने सहित निरस्त कर दी न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया कि एमपीएलआर की धारा 165 (6) के तहत भूअधिग्रहण के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है। लिहाजा, कोर्ट का कीमती वक्त बर्बाद करने वाली याचिका 10 हजार जुर्माने के साथ निरस्त की जाती है। यह था मामला याचिकाकर्ता फुलेश्वरी पांद्रे, अर्जुन वाल्के सहित अन्य की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि हिन्दुस्तान कापर लिमिटेड ने बालाघाट जिले में मलाजखंड कापर प्रोजेक्ट के लिए साल 1977 में उनकी जमीन का अधिग्रहण किया था भूअधिग्रहण में एमपीएलआर की धारा 165 (6) के नियत प्राविधानों का पालन नहीं किया गया था। अधिग्रहित भूमि वापस लौटाने के लिए उन्होनें एसडीएम के समक्ष आवेदन दायर किया था। एसडीएम ने उनके पक्ष में आदेश पारित किए थे। उक्त आदेश को चुनौती देते हुए एडीशनल कलेक्टर के समक्ष अपील दायर की गयी थी एडीशनल कलेक्टर ने साल 2010 में एसडीएम के आदेश को निरस्त कर दिया था। जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गयी है। सुनवाई में एकलपीठ को यह बताया याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ को बताया गया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया का याचिकाकर्ताओं ने विरोध नहीं किया। मुआवजा के अलावा उनके परिवार के सदस्यों को नौकरी भी प्रदान की गयी। पूरी प्रकिया पूर्ण होने के बाद गुमराह किए जाने के कारण उन्होनें उक्त याचिका दायर की है। एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि एमपीएलआर की धारा 165 (6) के तहत आदिम जनजाति के लोगों की जमीन लेने के लिए कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है। यह इसलिए है कि उनका कोई शोषण नहीं कर सके। अधिग्रहण की प्रक्रिया में कलेक्टर स्वंय एक पक्षकार था और मुआवजा की राशि निर्धारित की थी।
