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तो फिर नेहरु सरनेम का क्या होगा? प्रधानमंत्री

( श्रीगोपाल गुप्ता ) गत बुधवार को लोकसभा में और गुरुवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष पर जमकर गरजे या ये कहना ज्यादा सार्थक होगा कि वे गरजे नहीं " बल्कि "दहाड़े" तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि वे वास्तव में सिंह-ऐ-हिंद हैं जो गरजता नहीं दहाड़ता है!वो विपक्ष पर जमकर दहाड़े,लोकसभा में तकरीबन सवा घण्टे तो राज्यसभा में दहाड़ने का समय लगभग डेढ़ घण्टा रहा! मगर इसमें नया जैसा कुछ नहीं था क्योंकि उनका कोई भी जोशीला भाषण नेहरु,इंदिरा, गांधी परिवार और कांग्रेस के इर्द-गिर्द केन्द्रित ही रहता है जैसा वे सन् 1913 से लगातार दिये जा रहे हैं! वे दोंनो सदनों में खूब बोले और बोलते-बोलते राज्यसभा में तो वे यहां तक ब्यंग बोल गये कि गांधी परिवार में दम है तो परिवार का कोई सदस्य अपना सरनेम "नेहरु" क्यों नहीं रख लेता? जबकि नेहरु तो महान थे!हालांकि ये सच है कि प्रधानमंत्री काफी विद्धान,इतिहास के जानकार, और ज्ञान के समूद्र के साथ-साथ हिंदू धर्म के खास अनुयायी हैं , उनकी इस महानता पर कोई शक नहीं किया जा सकता बल्कि शक के दायरे में भी नहीं रखा जा सकता? क्योंकि इस तरह के तथ्य पर्क तर्क वे 9 साल में सैकड़ों दफा चुनावी मंच ,यहां-वहां और संसद में भी रख चुके हैं! अब ये अलग बात है कि भारतीय संस्कृति और पूज्य ग्रंथ ये कहते हैं कि यदि किसी भी व्यक्ति के बेटा -बेटे नहीं हों और बेटी -बेटियां हो भी तो उसका वंश समाप्त हो जाता है!क्योंकि बेटियां शादी करके जिस परिवार में जाती हैं उसी परिवार का सरनेम उनका और उनकी औलादों का हो जाता है! चूकि सन् 1942 में प्रयागराज में एक पत्रकार व स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे एक पारसी मुस्लमान नोजवान फारूक जहांगीर शाह से शादी करने वाली नेहरु की पुत्री इंदिरा नेहरु का सरनेम बदल कर गांधी हो गया!यह इसलिये संभव हो सका था क्योंकि शादी से पूर्व ही इंदिरा की शादी को देखते हुये आजादी के प्रेणता महात्मा गांधी ने फिरोज जहांगीर शाह को गोद लेकर अपना गांधी सरनेम उसको दे दिया था और हिंदु धर्म में यह परंपरा भी है कि गोद लेने वाले का सरनेम भी बदल जाता है इसलिये इंदिरा जहांगीर शाह की जगह गांधी हो गयी! हालांकि जब प्रधानमंत्री खुद संसद में कह रहे हैं कि नेहरु महान थे तो महान नेहरु के बेटा न होने के कारण उनका सरनेम उनके निधन के साथ ही बिलुप्त हो गया जो भारतीय संस्कृति के अनुसार समाप्त ही होना था! बहरहाल प्रधानमंत्री के खूब बोलने और भाषणों पर देश व विदेशों में चारों तरफ चर्चा और वाहवाही हो रही है! मगर देश -विदेश के वे निवेशक हैरान व परैशान हैं,जिनके खून की गाड़ी कमाई अडाणी समूह की कम्पनियों में शेयर के रुप में लगी है जो अमेरिकी हिंडन बर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आ जाने से धड़ाधड़ दो कौड़ी की होती जा रही है,उस पर तो प्रधानमंत्री मोदी कुछ भी नहीं बोले ! पांच दिनों तक हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद आडानी के शयरों के कत्लेआम के बाद निवेशकों का अरबों-खरबों डाॅलर डूबने पर ठप्प संसद में आम सहमति बनने पर सदन के चालू होने पर सवाल उठाने वाला विपक्ष भी अवाक है कि हमने क्या पूछा था और अब इस दौर के महान प्रधानमंत्री ने क्या बताया ? कि नेहरु सरनेम गांधी परिवार का कोई सदस्य क्यों नही लगाता?उधर देश के उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को लगभग उन्ही सवालों पर जो संसद में सरकार से पूछे गये थे,पर दायर एक याचिका पर तुरंत संज्ञान लेते हुये आडाणी समूह में निवेश करने वाले निवेशकों की चिंता को देखते हुये सरकार के वित्त मंत्रालय और बाजार नियामक(सेबी) से आडाणी समूह के शेयरों में कृतिम गिरावट पर जबाव मांगते हुये ये सुनिश्चित करने को कहा है कि एक मजबूत तंत्र और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति होना चाहिये जो शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा करे! माननीय न्यायालय ने साॅलिसिटर जनरल के इस तर्क को कि नियामक (सेबी)और वैधानिक निकाय इस पर आवश्यक कार्यवाही कर रही हैं को खारीज करते हुये कहा कि वे केवल विचार कर रही हैं और मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही हैं जबकि शेयर बाजार भावनाओं पर चलते हैं! न्यायालय ने उन दो जनहित याचिकाओं को 13 फरवरी को सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया, जिनमें हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट की जांच शीर्ष न्यायालय के सेवा निवृत न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति गठित करने का केन्द्र सरकार को निर्देश देने समेत राहत की मांग की गयी है! इससे यह स्पष्ट है कि सरकार और न्यायालयों में अन्तर तो है! जिन सबालों के जबाव संसद में अपेक्षित हैं उनके जबाव न्यायालयों से मिल रहे हैं,यदि न्यायालय एक सेवा निवृत न्यायाधीश की निगरानी में समिति गठित कर आरोपों की जाचं कराने के आदेश सरकार को दे देती है तो नेहरु महान के सरनेम का क्या होगा?प्रधानमंत्री जी

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