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कलयुग की मीरा ठाकुरजी के साथ लिए 7 फेरे जयपुर के गोविंदगढ़ के पास नरसिंहपुरा गांव में अनोखी शादी।
जयपुर के गोविंदगढ़ के पास नरसिंहपुरा गांव में अनोखी शादी हुई। शादी में 300 लोग मौजूद थे... दुल्हन के हाथों में मेहंदी थी... वरमाला हुई, फेरे लिए गए... कन्यादान और विदाई भी हुई.. बस एक बात अनोखी थी...दूल्हा 30 साल की पूजा सिंह ने गांव के मंदिर में विराजमान भगवान ठाकुरजी से शादी कर ली। ये शादी 8 दिसंबर को हुई। शादी के बाद पूजा अपने घर पर ही रहती हैं और ठाकुरजी मंदिर में। पूजा उनके लिए सवेरे भोग बनाकर ले जाती हैं। उनके लिए पोशाक बनाती हैं और शाम को दर्शन के लिए जाती है। पूजा की कुंडली में न कोई दोष है और न ही उन्होंने कोई मनौती मांगी। फिर पूजा ने ये शादी क्यों की? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी पूजा की जुबानी... 'बचपन से देखे थे पति-पत्नी के झगड़े' 'मेरी उम्र 30 साल हो चुकी है। अमूमन 20 से 25 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। मेरे घर में भी इसकी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी। अक्सर रिश्ते आते रहते थे। लोग मेरे मम्मी-पापा को कहने लगे थे कि बेटी की अब तो शादी कर दो, लेकिन मेरा मन इसके लिए तैयार नहीं था। मैंने बचपन से ही देखा है कि बेहद मामूली बात पर पति-पत्नी के बीच झगड़े हो जाते थे, विवादों में उनकी जिदंगी खराब हो जाती थी और इनमें महिलाओं को बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ता था। बड़ी होते होते मैंने निर्णय कर लिया था कि मैं शादी नहीं करूंगी।' 'शादी के लिए आए हर रिश्ते को मना किया' 'कॉलेज करने के बाद से ही मेरे लिए रिश्ते आने लगे। मम्मी-पापा भी जान पहचान वालों से कहते कि कोई अच्छा लड़का हो तो इसके लिए बताना। घर में इस तरह की बातें होने लगी कि बेटी है, बड़ी हो गई है, कब तक कुंवारी रखोगे। अब शादी कर दो, इन बातों से मैं परेशान होने लगी। मैं मम्मी-पापा को बता चुकी थी कि मुझे शादी नहीं करनी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। वे यही कहते कि तुम्हारी शादी की उम्र हो चुकी है, अब तो शादी करनी ही होगी। बीच में कुछ लड़के वाले देखने भी आए, एक दो बार तो रिश्ता जैसे-तैसे टल गया, लेकिन जब बार-बार लड़के देखने आने लगे तो आखिर में मैंने देखने आने वालों को ही हाथ जोड़कर मना कर दिया और मेरी इच्छा बता दी।' फेरो के दौरान रस्म निभाती पूजा सिंह। उन्हें कई लड़के वाले देखने आए, लेकिन उन्होंने जैसे-तैसे शादी टाल दी। फेरो के दौरान रस्म निभाती पूजा सिंह। उन्हें कई लड़के वाले देखने आए, लेकिन उन्होंने जैसे-तैसे शादी टाल दी। 'तुलसी विवाह के बारे में सुनकर किया फैसला' 'मैंने तुलसी विवाह के बारे में सुन रखा था। एक बार अपने ननिहाल में देखा भी था। सोचा कि जब ठाकुरजी तुलसाजी से विवाह कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ठाकुरजी से विवाह कर सकती। मैंने इसके बारे में पंडित जी से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि ऐसा हो सकता है। इसके बाद मां से बात की, शुरू में तो वे बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिर मान गई। जब हमने पापा को बताया तो वे नाराज हो गए और साफ मना कर दिया। नाराजगी के कारण पापा इस शादी में भी नहीं आए। 'लोगों ने मजाक उड़ाया, लेकिन मैंने परमेश्वर को पति मान लिया' 'बहुत से लोगों ने सपोर्ट किया और बहुत से लोगों ने मजाक भी बनाया, लेकिन मुझे उनकी चिंता नहीं है। दो साल से मैं यह विवाह करना चाहती थी, लेकिन आखिरकार यह अब हुआ है। मैंने परमेश्वर को ही अपना पति बना लिया है। लोग कहते थे कि सुहागन होना लड़की के लिए सौभाग्य की बात होती है। भगवान तो अमर होते हैं, इसलिए मैं भी अब हमेशा के लिए सुहागन हो गई हूं।' शादी से पूजा के पिता नाराज थे, उनके नहीं आने पर फेरों में उनकी जगह तलवार रखी गई। शादी से पूजा के पिता नाराज थे, उनके नहीं आने पर फेरों में उनकी जगह तलवार रखी गई। पिता शादी में नहीं आए, इसका दुख तीस साल की पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एमए हैं। पिता प्रेमसिंह बीएसएफ से रिटायर हैं और एमपी में सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं। मां रतन कंवर गृहणी हैं। तीन छोटे भाई हैं अंशुमान सिंह, युवराज और शिवराज। तीनों कॉलेज और स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं। ठाकुरजी से विवाह का फैसला उनका खुद का था। शुरू में समाज, रिश्तेदार और परिवार के लोग इस पर सहमत नहीं हुए, लेकिन फिर मां ने जरुर बेटी की इच्छा का सम्मान कर सहमति दे दी थी। पिता ना पहले राजी थे और ना ही आज। इसीलिए शादी में भी नहीं आए। सारी रस्में मां ने ही पूरी की। दैनिक भास्कर ने जब उनसे इस तरह से शादी के बारे में पूछा तो बोलते-बोलते उनकी आंखे भर आई। बोली, पापा नहीं आए मुझे बहुत दुख है, लेकिन इस शादी से मैं बेहद खुश हूं, क्योंकि घर, परिवार समाज में जो कुछ मैंने देखा है उसके बाद मैं कभी शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन लोगों ने ताने मारने शुरू किए तो कुंवारी ना कहलाऊं इसलिए यह निर्णय लिया। दुल्हन की पोशाक में पूजासिंह, उन्होंने भगवान की पीली पोशाक की तरह ही पीला वेश पहना। दुल्हन की पोशाक में पूजासिंह, उन्होंने भगवान की पीली पोशाक की तरह ही पीला वेश पहना। शादी में पूजासिंह की सहेलियां भी शामिल हुईं। उन्होंने पूजा को मेहंदी और हल्दी लगाई। शादी में पूजासिंह की सहेलियां भी शामिल हुईं। उन्होंने पूजा को मेहंदी और हल्दी लगाई। सखी सहेलियां भी हुईं शामिल पूजासिंह की शादी में उसकी सहेलियां और रिश्तेदार भी शामिल हुए। करीब तीन सौ लोगों के लिए भोजन बनाया गया। इसमें करीब तीन लाख रुपए खर्च हुए। शादी की रस्मों के दौरान हल्दी लगाने से लेकर मेहंदी तक की रस्में धूमधाम से हुईं। सहेलियों ने पूजा को सजाया संवारा। उसने सहेलियों के साथ डांस भी किया। घर में रोजाना मंगलगीत गाए गए। पूजासिंह ने ठाकुरजी को हाथों में लेकर सात फेरे लिए। पूजासिंह ने ठाकुरजी को हाथों में लेकर सात फेरे लिए। खुद ने चंदन से भरी मांग शादी में परंपरानुसार दुल्हा दूल्हन की मांग सिंदूर से भरता है, लेकिन इस शादी में यह परंपरा भी कुछ अलग तरीके से हुई। ठाकुरजी की ओर से खुद पूजासिंह ने अपनी मांग भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी। शादी की सारी रस्में निभाई, मां ने किया कन्यादान पूजा सिंह और ठाकुरजी का यह विवाह सभी रीति रिवाजों से हुआ। बाकायदा गणेश पूजन से लेकर चाकभात, मेहंदी, महिला संगीत और फेरों की रस्में हुई। ठाकुरजी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया। मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए। पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया। इसके बाद विदाई हुई। परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए। ठाकुर जी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई। विवाह में पूजासिंह की मां ने उसका कन्यादान किया विवाह में पूजासिंह की मां ने उसका कन्यादान किया अब जमीन पर सोती हैं, रोजाना बनाती हैं भोग पूजा सिंह बताती हैं कि अब कोई मुझे यह ताना नहीं मार सकता कि इतनी बड़ी होकर भी कुंवारी बैठी है। मैंने भगवान को ही पति बना लिया है। शादी के बाद ठाकुरजी तो वापस मंदिर में विराजमान हो गए हैं जबकि पूजा अपने घर पर रहती है। अपने कमरे में पूजा ने एक छोटा सा मंदिर बनाया है, जिसमें ठाकुरजी हैं। वह उनके सामने अब जमीन पर ही सोती है। रोजाना सवेरे सात बजे मंदिर में विराजमान ठाकुरजी के लिए वह भोग बनाकर ले जाती हैं। जिसे मंदिर के पुजारी भगवान को अर्पित करते हैं। इसी तरह वह शाम को भी मंदिर जाती हैं। फेरो के बाद पूजासिंह की आरती करती परिवार की सदस्य। फेरो के बाद पूजासिंह की आरती करती परिवार की सदस्य। शादी के बाद हुई भावुक यह शादी केवल परंपराओं से नहीं जुड़ी थी बल्कि इसमें भावुकताएं भी थी। फेरों के बाद विदाई की रस्म भी हुई हालाकि पूजासिंह को अपने घर ही रहना था, लेकिन इस रस्म के दौरान पूजासिंह की आंखें भर आईं। शादी में मौजूद अन्य लोग भी भावुक हो गए। पूजा ने अपने घर की दहलीज पर धोक लगाई और विदा हुई। बाद में ठाकुरजी को वापस मंदिर में विराजमान कर दिया गया। विदाई के समय पूजासिंह भावुक हो गईं और रोने लगीं। विदाई के समय पूजासिंह भावुक हो गईं और रोने लगीं। लोगों ने मजाक भी उड़ाया, लेकिन परवाह नहीं की ऐसा नहीं है कि पूजा सिंह का यह निर्णय और इस शादी को सभी ने सहर्ष मान लिया हो। कई लोगों ने इसका विरोध भी किया। शादी के बाद भी कई लोग पूजा का मजाक उड़ाते रहे, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। वह बताती हैं कि मैंने जो कुछ दूसरों के वैवाहिक जीवन में देखा है, उससे यह निर्णय लिया। अब मेरा मन शांत रहता है। जहां तक पापा की नाराजगी का सवाल है तो उन्हें भी मना लूंगी। मेरी संगीत में रूचि है, अब इसी क्षेत्र में आगे बढूंगी। फेरों के बाद आशीर्वाद देती परिवार की महिलाएं। फेरों के बाद आशीर्वाद देती परिवार की महिलाएं। धार्मिक रूप से यह विवाह मान्य आचार्य राकेश कुमार शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु शालिग्राम जी से कन्या का विवाह शास्त्रोक्त है। जिस तरह से वृंदा तुलसी ने विष्णु भगवान का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए ठाकुरजी से विवाह किया है, यह ठीक वैसे ही है। पहले भी ऐसे विवाह होते आए हैं। कर्मठगुरु पुस्तक में विवरण पृष्ठ संख्या 75 पर दिया गया है। विष्णु भगवान से कन्या वरण कर सकती है। तुलसी विवाह भी इसी प्रकार का पर्याय है।
