मुख्य समाचार
मुरैना श्योपुर लोकसभा के लिए सत्यपाल सिंह सिकरबार नीटू कांग्रेस के प्रत्याशी हो सकते हैँ सूत्र
सिंधिया कांग्रेस की छाया से मुक्त कांग्रेस से लोगों को बड़ी उम्मीदें माधवराव सिंधिया 1980 में जनसंघ छोड़ कर कांग्रेस में आए थे 2001 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनकी राजनितिक विरासत सम्हाली 2020 मे ज्योतिरादित्य अचानक कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गये साथ में अपनी सिंधिया कांग्रेस भी ले गए जिसमे वे विधायक और पार्टी पदाधिकारी थे जिन्हे उनके कहने पर पार्टी ने टिकट और पद दिए थे सिंधिया युग के 40 सालों में कांग्रेस हाई कमान ने पिता पुत्र की इस जोड़ी को देश भर में और मध्यप्रदेश मे ख़ासकर चंबल ग्वालियर इलाके मे विशेष महत्व दिया ।कांग्रेस धीरे धीरे सिंधिया कांग्रेस बन गई लेकिन हाइकमान इसे अनदेखा करता रहा सिंधिया परिवार को इतना महत्व देने से कांग्रेस को क्या हासिल हुआ ?लोकसभा के स्तर पर बात करें तो सिंधिया पिता पुत्र की जोड़ी के नेतृत्व मे चंबल की मुरैना सीट पर हुए 10 चुनावो में से सिर्फ 2 चुनाव कांग्रेस जीती वो भी माधव राव के समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समय के 4 लोकसभा चुनावो में पार्टी को हासिल हुआ शून्य अब 2024 का चुनाव इस परिवार की छाया से मुक्त है चंबल के लोगो को उम्मीद है कि यह कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में अपने बूते कुछ कर दिखा पाएगी । *************************************************************** चंबल में कांग्रेस पहली बार 2024 का लोकसभा चुनाव ग्वालियर महल की छाया से मुक्त होकर लड़ेगी । इससे कांग्रेस में अब उन कांग्रेसियों को भी अपने राजनीतिक भविष्य को सवारने मौका मिल सकेगा जो कांग्रेस में रह कर भी इसलिए उपेक्षित थे क्यों कि वे सिंधिया खेमे से जुड़े नही थे । कांग्रेस में सिंधिया खेमा 1980 में तब अस्तित्व में आया था जब ग्वालियर महाराज माधवराव सिंधिया जनसंघ छोड़ कर कांग्रेस में आए थे उससे पहले प्रकाश चंद सेठी,विद्याचरण शुक्ल की जोड़ी चंबल में कांग्रेस की राजनीति की दिशा और दशा तय करती थी सिंधिया के आने के बाद ये सारे नेता नेपथ्य में चले गये और कांग्रेस धीरे धीरे सिंधिया कांग्रेस बन गई । चंबल में दो लोकसभा सीट भिंड और मुरैना - श्योपुर हैँ भिंड लोकसभा सीट पर माधव राव सिंधिया की पकड़ कमजोर रही लेकिन मुरैना श्योपुर लोकसभा सीट जो 1967 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई थी पर उनकी मजबूत पकड़ रही यहाँ से कांग्रेस से कौन चुनाव लड़ेगा इसका फैसला सिंधिया के हाथ में ही होता था 2001 में एक हवाई दुर्घटना में माधवराव की असमय मृत्यु के बाद उनकी रजनीतिक बिरासत कांग्रेस नें उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप दी यह रवायत 2020 तक जारी रही 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अज्ञात कारणों से कांग्रेस से छोड़ छुट्टी कर ली और भाजपा में चले गए । कांग्रेस को चंबल में खुद को सिंधिया कांग्रेस बना लेने से क्या हासिल हुआ इसका लेखा जोखा देखते हैँ तो पता चलता है कांग्रेस ने पार्टी के भविष्य के तौर पर खोया ज्यादा पाया कम इसके बिपरीत सिंधिया परिवार राजनीति में लगातार मजबूत हुआ और उसी मजबूती के बूते आज भाजपा में रह कर भी सत्ता की मलाई चाट रहा है और कांग्रेस पर गुर्रा रहा है । 1980 में जब माधव राव कांग्रेस में आए तब 1980 का लोकसभा चुनाव बिना उनकी मदद या प्रभाव के बाबूलाल सोलंकी जीते थे जो तब शुक्ल खेमे से जुड़े थे ।1984के चुनाव में सिंधिया ने उनका पत्ता साफ कर दिया उन्होंने अपने खेमे के कम्मोदी लाल को टिकिट दिलबा दिया जो जीत गए 1989 में इन्ही कम्मोदी लाल को फिर टिकिट दिलाया इस बार वे चुनाव हार गए 1991 में सिंधिया ने फिर अपने एक कर्मचारी बारे लाल जाटव को टिकिट दिलबाया जो जीत गए ।1996 में बारे लाल जाटव चुनाव हार गए इसके बाद 2019 तक हुए 7 लोकसभा चुनावों में से एक भी चुनाव कांग्रेस नही जीती इन सभी 7 चुनावों के टिकिट सिंधिया कांग्रेस ने ही बांटे थे1984 से 2019 तक के बीच हुए लोकसभा के 10 में से कुल 2 चुनाव सिंधिया कांग्रेस जीती और 8 हारी इसके बाद भी पार्टी कोई सबक सीखने को तैयार नही थी कांग्रेस को तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने पार्टी को अपनी पकड़ से आजाद करके अपने पैरों पर खड़ी होने का मौका दिया इस बार् बिना किसी खेमे के सहारे अपने बूते चुनाव लड़ कर पार्टी शायद कुछ सफलता हासिल कर ले । कांग्रेस से सिंधिया कांग्रेस बनने का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि आज पार्टी के पास कोई ऐसा चेहरा नही है जिसे वह लोकसभा चुनाव लड़ा सके ऐसा कोई चेहरा सिंधिया कांग्रेस के पास भी नही था 2009 में रिजर्व से सामान्य सीट हो जाने के बाद सिंधिया ने अपने खेमे के रामनिवास रावत को टिकट दिलाया था जो तब श्योपुर की विजयपुर विधान सभा सीट से विधायक का चुनाव लड़ते थे रामनिवास रावत यह चुनाव हार गए 2014 में सिंधिया फिर रामनिवास रावत को टिकिट दिलाना चाहते थे लेकिन इस दिग्विजय सिंह ने इसमें भांजी मार दी और अपने खास गोविंद सिंह को प्रत्याशी बनबा दिया गोविंद सिंह को हराने के लिए सिंधिया ने अपने खेमे से बृंदावन सिंह सिकरबार को बसपा से चुनाव लड़वा दिया नतीजतन कांग्रेस तीसरे नंबर पर पहुँच गई 2019 में पार्टी ने फिर सिंधिया की पसंद पर रामनिवास रावत को टिकट दे दिया हमेशा की तरह रामनिवास रावत की बैट्री इस बार भी श्योपुर से सबलगढ़ आते आते खत्म हो गई और भाजपा चुनाव जीत गई । 2024 में भी सिंधिया खेमे के पास होते तो ले दे कर वही राम निवास रावत होते लेकिन कांग्रेस के पास अब मौका है कि वह जीत सकने बाले गैर सिंधियाई प्रत्याशी की खोज करे और उसे चुनाव लड़ाए सिंधिया खेमा जो इस समय पूरा का पूरा भाजपा में समाहित है अपने आका के इशारे पर कांग्रेस को हराने की पूरी कोशिश करेंगा ताकि यह सिद्ध कर सकें कि "जीत वहाँ उनका नेता जहां" लेकिन जब कांग्रेस में रहते लोग नही जीतते थे तो ज्योतिरादित्य खेमे के हराये इस बार हारेंगे भी नही । कांग्रेस के पास 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने का मौका इसलिए भी है कि भाजपा ने इस बार दिमनी से विधायक रहे शिव मंगल सिंह तोमर को प्रत्याशी बनाया है शिव मंगल सिंह मूलतः नरेंद्र सिंह तोमर के खास आदमी है2008 में दिमनी विधान सभा के सामान्य सीट होने पर नरेंद्र सिंह तोमर ने पहला चुनाव शिवमंगल सिंह तोमर को लड़ाया था वे यह चुनाव जीत भी गए थे हालाकि उनकी जीत का अंतर कुछ सौ वोटो का ही था लेकिन 5 साल की विधायकी ने शिवमंगल सिंह तोमर को बेहद अलोकप्रिय बना दिया नतीजतन 2013 के चुनाव में। केंद्रीय मंत्री रहत नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा दिमनी के घर घर जाकर वोट मागने के बाद भी लोगों ने। उनके कहने पर भी शिवमंगल सिंह को वोट नही दिए वे चुनाव हार गए ,2018 में भी यही कहानी दुहराई गई इसके बाद भी 2024 की लोकसभा के चुनाव के लिए नरेंद्र सिंह तोमर के कहने पर पार्टी ने शिव मंगल सिंह तोमर को टिकट दे दिया उनकी जीत का सारा दारोमदार नरेंद्र सिंह तोमर के ऊपर है जो 2023 में मुरैना सांसद से स्तीफा देकर दिमनी से विधायक और मध्य्प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हैँ ऐसे में कांग्रेस के पास मौका है एक जिताऊ उम्मीदवार देकर इस सीट को जीत लेने का .
