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पोखरण की मिट्टी से पाटरी कला प्रशिक्षण में झलक रहा बच्चों में उत्साह

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय की शैक्षणिक कार्यक्रम श्रृंखला ‘करो और सीखो’ के अंतर्गत राजस्थान के पोखरण क्षेत्र की मृदभांड (पाटरी) कला पर आठ दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन संग्रहालय के चरैवेति स्थित सिरेमिक कार्यशाला में किया जा रहा है। इसमें पारंपरिक टेराकोटा कलाकार लूणाराम अपने सहायक के साथ बच्‍चों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। शनिवार को प्रतिभागियों को लूनाराम ने बताया कि पोखरण की मिट्टी की विशेषता है कि लाल व कत्थई रंग की माटी से बने मृण पात्रों को जब लकड़ी की सहायता से पारंपरिक तरीके के अवाड़ा में पकाया जाता है तब पकने के बाद इन मृण पात्रों का रंग हल्के गुलाबी रंगत जैसा हो जाता है, जो इस माटी की विशेषता है। पारंपरिक तरीके से पकाने से पूर्व खडिया, गेरू, पीला व काले रंग से पारंपरिक शैली में अलंकरण व बेलबूटों का रूपांकन महिला कुंभकार करते हैं।

पोखरण के सभी मृण शिल्पकार चाक, हाथरी, घागा, पिंडी, थापा, टुलकिया, कूंद, खुरपा, मंडाई आदि प्रयोग कर मृण से बने पारंपरिक कला रूपों को आकारित कर मुख्यतः बडबेड़ा, खरल, परात, पारोटी, चाडा, पारा, मटकी, घड़ा, कुलडी आदि के साथ ही विविध पशु-पक्षियों की छोटी-बड़ी आकृतियां व भांति-भांति के अलंकृत गुल्लक बनते हैं।

अभी जारी हैं पंजीयन

कार्यक्रम के बारे में सहायक कीपर गरिमा आनंद ने बताया की ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान संचालित श्रृंखला की अगली कड़ी में उदयपुर राजस्थान की उपाड चित्रकला, फ़ोटोग्राफी कार्यशाला, मुखौटा निर्माण कला, रिलीफ चित्रकला का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में 12 वर्ष से अधिक आयु समूह के इच्छुक प्रतिभागी पांच सौ रुपये शुल्क भुगतान कर पंजीयन करवा सकते हैं। प्रशिक्षण हेतु आवश्यक मिट्टी संग्रहालय द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। प्रशिक्षण शिविर पूर्वान्ह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक संचालित हो रहा है।

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