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क्षत्रिय की उपेक्षा की जा रही है जो देश हित में नहीं है।

विचार करें और क्षत्रिय संगठन दिल्ली की सरकार पर दबाव बनाएं कि वास्तव में आज आम राजपूत क्या महसूस कर रहा है, कि राजपूतों की उपेक्षा की जा रही है जो देश हित में नहीं है !उत्तर प्रदेश में 17 महानगर निगम में यदि एक भी राजपूत को टिकट नहीं दिया गया है ,तो यह राजपूतों की उपेक्षा को स्वत प्रमाणित करता है लगता हैदेश का एक क्षत्रिय विरोधी मानसिकता रखने वाला ग्रुप क्षत्रियों के खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है जिसका नेतृत्‍व कहां से हो रहा है यह विचार करने योग्य है क्योंकि क्षत्रिय विरोधी यह मानसिकता कहीं देश विरोधी मानसिकता सिद्ध ना हो जाए? बिहार में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को सरकार ने थोड़ी सी ढील देकर रिहा कर दिया है। इस ढील की वजह से आनंद मोहन के साथ कई अन्‍य नेता भी रिहा हुए हैं।लेकिन मीडिया से लेकर सभी का निशाना केवल आनंद मोहन सिंह को बनाया जा रहा है!। जानबूझकर उनकी तुलना अतीक अहमद जैसे हार्डकोर अपराधी से की जा रही है।जबकि आनंद मोहन पर ना तो जबरिया जमीन कब्‍जाने का कभी आरोप लगा, ना अपहरण या किसी की हत्‍या का आरोप लगा। जिस हत्‍या के आरोप में आनंद मोहन सजा काट रहे हैं, उस हत्‍याकांड को भी उग्र भीड़ ने अंजाम दिया था, ना कि आनंद मोहन सिंह ने। परंतु, आनंद मोहन सिंह सबके निशाने पर हैं।क्‍योंकि वो क्षत्रिय समाज से ताल्‍लुक रखते हैं।जिसका मान मर्दन करने में क्षत्रिय विरोधी सारी लावी लगी हुई है? क्षत्रिय विरोधी ताकते भी एकजुट हैं। यह सब कुछ किसके इशारे पर हो रहा है इस पर समाज को विचार करना चाहिए ! 17 नगर निगमों में एक भी क्षत्रिय को टिकट नहीं होने दिया।क्‍योंकि योगी आदित्‍यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता और ईमानदार छवि शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है ऐसे लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए हिंदुओं और देश के साथ भी खिलवाड़ करने से नहीं हिचक रहे हैं विधानसभा चुनाव में भी योगी को हराने के लिये सारे खटकर्म किये। लेकिन अपनी ईमानदार छवि और कड़क कानून व्‍यवस्‍था के सहारे योगी ने सरकार की वापसी कराई। क्षत्रिय वोटरों को अपना बंधुआ समझा जा रहा है। बीते दिनों यूपी में नामित आधा दर्जन एमएलसी में एक जाति विशेष वर्ग को तो प्रमुखता दी गई।लेकिन क्षत्रियों को दरकिनार कर दिया गया। दरअसल, योगी आदित्‍यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिये क्षत्रियों को बुरी तरह निशाना बनाया जा रहा है बिहार में आनंद मोहन सिंह की रिहाई को लेकर क्षत्रिय विरोधी जिस तरह हमलावर है। उसके लिये संदेश कहां से मिला है यह विचारणीय प्रश्न है आनंद मोहन को बाहुबली और अपराधी बताने की साजिश रची जा रही है।जबकि आनंद मोहन की छवि भले दबंग की रही है। लेकिन आनंद मोहन ने माफिया या अपराधियों जैसे कोई काम नहीं किये। अपहरण, हत्‍या, रंगदारी, लूट, जमीन कब्‍जा, वसूली जैसे आरोप आनंद मोहन पर कभी नहीं लगे। आनंद मोहन सिंह लालू यादव के अराजक दौर में अपने समाज के पक्ष में लालू पोषित अपराधियों से जूझते रहे। जिसके चलते लालू की सरकार ने उन्‍हें जबरिया इस कांड में फंसा दिया। दरअसल, जिस मामले में आनंद मोहन को सजा दी गई है, वह पूरी तरह सरकार प्रायोजित मामला रहा है। आज भले ही राजद राजनीतिक लाभ के लिये आनंद मोहन के साथ खड़ा दिख रहा है।लेकिन आनंद मोहन को हत्‍यारा घोषित कराने में लालू यादव ने पूरी ताकत झोंक दी थी। सजा पा रहे लालू यादव 1994 में बिहार के मुख्‍यमंत्री थे। उन्‍हीं की सरकार के मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद पर मुजफ्फरपुर के छोटन शुक्‍ला की हत्‍या कराने का आरोप लगा था। घटना 5 दिसंबर 1994 को घटी थी। भूमिहार जाति से आने वाले छोटन शुक्‍ला के समर्थक उनके शव के साथ सड़क जाम कर प्रदर्शन कर रहे थे। सरकार पोषित माफिया बृज बिहार के खिलाफ, छोटन के लोगों को अपना समर्थन देने के लिये राजनीतिक कारणों आनंद मोहन भी मौके पर पहुंच गये थे। भीड़ गुस्‍से में थी। सरकार के खिलाफ नाराजगी थी।क्‍योंकि हत्‍या के आरोप सरकार के मंत्री पर लगे थे। इसी बीच, गोपालगंज के डीएम जी कृष्‍णैया भी पटना में किसी मीटिंग से लौट रहे थे। लाल बत्‍ती लगी कार देखकर भीड़ उग्र हो गई। जब तक आनंद मोहन समेत वहां मौजूद बड़े नेता कुछ समझ पाते, भीड़ ने पीट-पीटकर कृष्‍णैया की हत्‍या कर दी। लालू को मौका मिल गया अपने राजनीतिक विरोधी आनंद मोहन सिंह को निपटाने का, जो उस दौर में एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रहे थे। लालू की सरकार, सिस्‍टम और पुलिस ने पूरी ताकत लगाकर आनंद मोहन सिंह को डीएम का हत्‍यारा बना दिया। जबकि उन्‍होंने ना तो पत्‍थर चलाया और ना डीएम की कार तक गये। आनंद मोहन उस अपराध की सजा पा गये, जिसे उन्‍होंने किया नहीं था। केवल आनंद मोहन की मौके पर मौजूदगी को आधार बनाकर उन्‍हें हत्‍यारा बना दिया गया। भीड़ में हजारों लोग थे, लेकिन पुलिस ने ज्‍यादातर लोगों की तरफ ध्‍यान ही नहीं दिया। आनंद मोहन को शिकार इसलिये बनाया गया था। क्‍योंकि वह क्षत्रियों के मजबूत नेता बनकर उभर रहे थे तथा बिहार में राजपूतों के खिलाफ होने वाले अत्‍याचार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। लालू की सरकार इससे डरी हुई थी। आनंद मोहन कोई अपराधी नहीं हैं और ना ही उनके खिलाफ कोई संगीन मुकदमा दर्ज था। क्षत्रिय विरोधी मानसिकता रखने वाला मीडिया आनंद मोहन को अतीक अहमद जैसे हत्‍यारे के समकक्ष लाकर खड़ा करना चाहती है। जिसकी पैदाइश ही हत्‍या जैसे घिनौने अपराध से हुई थी। अपहरण और वसूली करने वाले अपराधी के बराबर आनंद मोहन सिंह को खड़ा करने की साजिश रची जा रही है। अब समय आ गया है कि पूरे देश में 16 फीसदी जनसंख्‍या की ताकत रखने वाले क्षत्रिय एक होकर अपने उन लोगों के साथ खड़े हों, जिन्‍हें अपने समाज की मदद करने की सजा देने की साजिश रची जा रही है। आनंद मोहन सिंह हों, बृज भूषण शरण सिंह हो या फिर कोई सिंह हों। समाज को अपने लोगों के साथ खड़ा होने का प्रण लेना होगा। । अब समय आ गया है कि क्षत्रिय मतदाता चुनाव में अपने विवेक का उपयोग करते हुए वोट देने से पहले कुछ विचार अवश्य करें क्योंकि राजपूत के खून में राष्ट्रवाद और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है और भाजपा राष्ट्रवाद की बात करती है अतः पूरे देश का राजपूत आंख मीच कर भाजपा के पीछे लगा हुआ है इस बात को भाजपा के उच्च नेतृत्व को ध्यान में रखना चाहिए कि देशभक्त कॉम की कहीं भाजपा उपेक्षा तो नहीं कर रही है ? भाजपा ने यूपी के निकाय चुनाव 17 नगर निगम में एक भी क्षत्रिय को टिकट नहीं दिया है। यह भी एक विचारणीय प्रश्न है और दिल्ली को इस बात पर सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों किया गया ! यूपी में तो शत-प्रतिशत राजपूत समाज योगी आदित्यनाथ के साथ के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है निकाय चुनाव शुरुआत है।लोकसभा चुनाव आते आते ऐसा आचरण पूरे देश में राजपूतों को कुछ सोचने के लिए मजबूर करेगा और राजपूत सब कुछ सहन कर सकता है लेकिन अपनी उपेक्षा और अपमान कभी सहन नहीं करता है यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए! कहीं राजपूत विरोधी सोच पूरे देश की राजनीतिक दिशा ना बदल दे? हमारी चुप्‍पी को हमारी कमजोरी समझने की भूल करने वालों को भी समझ समझना चाहिए कि जब एक लड़ाकू कौम लड़ने पर आती है ।तो अंजाम क्‍या होता है? ठाकुर गोपाल सिंह राठौड़ सरदार मोहल्ला नीमच सिटी मध्य प्रदेश

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