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मुरैना। मुसाफिर तेरे जिक्र से ही महकता रहा रास्ता देर तक.
मुरैना। परम श्रृद्वेय भाई जी के 94 वें जन्म दिवस 07 फरवरी पर विशेष) रायपुर -(जगदीष शुक्ला)- बागियों की दहशत की तपिष से झुलसते चम्बल अंचल के रेगिस्तान को अहिंसा के मार्ग पर प्रशस्त कर शांति और सद्भाव की शीतलता का अहसास दिलाने बाले भाई जी जिन्होंने ंिहंसा की आग में झुलसते चंबल अंचल को बागी समस्या जैसी भयावह समस्या से निजात दिलाने के लिये अविश्वसनीय ही नहीं असंभव सा लगने बाला बागियों का सामूहिक आत्मसमर्पण कराकर नया इतिहास ही नहीं रचा अपितु चंबल के बीहड़ों में खून की होली खेलने और अपनी हुकूमत चलाने बाले हिंसक बागियों का हृदय परिवर्तन कराकर उन्हें महात्मा गांधी जी के सत्य अहिंसा के मंत्र से संस्कारित कर नव जीवन प्रदान किया। यही नहीं देश की तरूणाई को श्रम संस्कारों से दीक्षित कर दीर्घ कालिक युवा शिविरों की श्रृंखला से उसके विकास और नव श्रृंगार का वीणा उठाने बाले आदरणीय डा.एस.एन.सुब्बाराव शांति अहिंसा के शिल्पी दुर्भाग्य से इस दुनियां में नहीं हंै। फिर भी इस महामानव के होने का अहसास हमारी धड़कनों में समाहित सा है। हर पल हमें उनका ””कृतित्व प्रेरणा देता रहता है देश और दुनियां के लिये कुछ करने का। कदाचित हम सभी असंख्य जन अपने प्रिय भाई जी की आत्मीयता से इस हद तक ओतप्रोत हो गये थे कि हम में से शायद किसी को भी 27 अक्टूबर 2021 जैसी भाई जी को जुदा करने बाली दुखद तारीख की कल्पना भी नहीं की होगी। कल्पना भी करें तो कैसे हमारा तो यकीन था कि जिन लोगों के जीने का लक्ष्य दूसरों की पीड़ा और संताप को हरकर खुशियां बांटना हो,जिसका दिल हमेशा दूसरों के लिये ही धड़कता हो एसी महान आत्मायें कभी मरती नहीं हैं। भाई जी के जाने के बाद मुझे किसी शायर की कही गई पंक्तियां पूरी तरह सार्थक नजर आती हैं जिसमें उसने कहा है कि मुसाफिर तेरे जिक्र से ही महकता रहा रास्ता देर तक.....भाई जी के कृतित्व की महक हमें उनके बताये रास्ते पर आगे बढ़ने का हौसला एवं नैतिक बल देती रहेगी। नियति का क्ूर सच यही है कि जो आया है उसे एक ना एक दिन जाना है। उसी सच को प्रमाणित करने के लिये भाई जी हम सभी को छोड़कर यह कहते हुए रूखसत हो गये कि ”मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूं मगर सफर सफर है मेरा इंतजार न करना“। कदाचित फिर भी हम सभी को आज भी उनका इंतजार है,भाई जी के आने का कभी खत्म नहीं होने बाला इंतजार और सिर्फ इंतजार। शायद तभी हम उनके 94 वें जन्म दिवस को पूर्व की तरह ही ठीक बैसे ही मनाने के लिये जैसा उनके सामने मनाते थे 07 फरवरी 2023 को रायपुर शहर में एकत्रित हो रहे हंै। उस यथार्थ को जानते हुए भी कि अपनी अनंत यात्रा पर रवाना हो चुके हमारे आदरणीय भाई जी अब हमारे बीच कभी नहीं आयेंगे। शायद यह भाई जी के प्रति हमारा अति स्नेह और लगाव और श्रृद्वा ही है जो हमें उनसे जुदा होने की कल्पना का सामना नहीं करने देना चाहती। यह सच है कि भाई जैसे महामानव सदियों में एकाध बार ही जन्म लेते हैं। इस मायने से हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हम सभी को उस महामानव का सानिध्य,स्नेह प्यार और उनके स्नेहजल से सिंचित होकर पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हुआ। हममें से कदाचित किसी ने महात्मा गांधी जी को नहीं देखा हम सभी खुश नसीब हैं कि गांधी जी के आदर्श और विचारों को आत्मसात कर अपने आचरण से गांधी जी का साक्षत्कर कराने बाले इस सदी के गांधी अर्थात डा.एस.एन.सुब्बराव जी का सानिध्य और नजदीकियां हम सभी को हासिल हुईं। भाई जी के इस दुनियां से चले जाने के बाद के हमारे दिन कैसे गुजरे यह हम हीं जानते हैं। कदाचित हम में से किसी ने भी इस दिन की कल्पना की होगी कि भाई जी हमें यूं असहाय छोड़कर चले जायेंगे,लेकिन यह भी एक सच है जिसे हमें अंततः स्वीकार करना होगा। मृत्यु के अटल सत्य को अधिक समय तक नकार कर हम भाई जी की सत्य निष्ठा उनकी तपस्या को कलंकित नहीं कर सकते। आखिर हमने भाई जी के जीवन से पूर्ण नही ंतो कम से कम अंशतः तो कुछ ना कुछ तो सीखा ही है। जो दूसरों के लिये जीता है वह कभी नहीं मरता भारतीय दर्शन में एक स्थापित सत्य यह भी है कि जो परोपकार अथवा दूसरों के लिये जीता है वह कभी मर नहीं सकता। भाई जी की सर्व धर्म समभाव की गीत गाती बुलंद आवाज,मौन श्रम,उनका अनंन्य देश प्रेम,सभी के प्रति प्रेम,सद्भाव एवं आत्मीय प्रेम अमर है। उनके दर्शन,विचार और गांधीवाद के आदर्शों के प्रति अटूट निष्ठा कभी मर नहीं सकती। भाई जी का अनुपम किरदार हम सभी के वाणी,विचार और कृतित्व में सदैब आभासित होता रहेगा। श्रृद्वेय भाई जी के व्यक्तित्व का अनूठा आकर्षण,शांति,अहिंसा,सर्वधर्म समभाव का आकर्षण आज भी हमें अपनी ओर उसी प्रकार आकर्षित कर रहा है जैसे वे अपने जीवनकाल में हमें अपने साथ बांधे रहते थे। उनका अमर कथन एक घंटा देह को एक घंटा देश को और उनकी मधुर आवाज में अनुगुंजित होने बाले सबके लिये खुला है मंदिर है ये हमारा जैसे कई गीत हमारे जीवन केे भटकाव में हमें प्रकाश स्तम्भी की तरह मार्ग प्रशस्त करता रहेगा। इस स्थापित सत्य के मुताबिक भाई जी प्रत्यक्ष रूप से भले ही हमसे जुदा हो गये हों लेकिन वे अपने सूक्ष्म रूप में आज भी हर पल हमारे साथ है हमारा मार्गदर्शन करते हुए हमें भटकने से बचाने के लिये उनके विचार पथदर्शक का कार्य करते रहेंगे। उनकी अनंत नैतिक शक्ति एवं अगाध मानवसेवा की बिरासत हमारी धरोहर है। धर्म हम सभी जानते हैं कि चम्बल की वेदना मिटाने भाई जी ने किया जीवन समर्पित सुदूर कर्नाटक मंे जन्म के उपरांत अपनी सभी उच्चाकांक्षाओं को अपनी योग्यता एवं क्षमता से आसानी से हासिल करने में सक्षम भाई जी ने निजी महत्वकांक्षाओं को तिलांजलि देते हुए पीड़ितजन की वेदना हरण के लिये उसकी सेवा का पथ चुना एक एसा यायावरी जीवन जहां न कोई विश्राम था और ना कोई मुकाम। पीड़ित जन और मानवता की सेवा में उन्हंे परमेश्वर की पूजा का सुकून हासिल होता था। यही बजह थी अपनी प्रारम्भिक चम्बल यात्रा में ही उन्हें माता चम्बल की बागी समस्या की पीड़ा समझ में आ गई। यही नहीं चम्बल अंचल की लाईलाज समझी जाने बाली बागी समस्या जैसी बीमारी के उपचार के लिये उनके कदम चम्बल में सदा सदैब के लिये थम गये। बागी समर्पण एक चमत्कार चम्बल की धरती पर इस अवतारी महापुरूष के कदम एसे पड़े कि जिस बागी समस्या का समधान कर पाने में हुकूमतें नाकामयाब रहीं उसका समाधान भाई जी ने महज एक बर्ष के कठिन परिश्रम से कर दिखाया। हिंसा अपराध,खूनखराबा, बन्दूक और कानून से खिलबाड़ कर मुठभेड़ को अपना अंजाम मान बैठे चम्बल के सैकड़ों बागियों को भाई जी ने गांधीवाद की एसी घुट्टी पिलाई कि महात्मा गांधी के चरणों में बागियों की बन्दूकों का पतझड़ लग गया। चम्बल में यह किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं था। गांधी जी के अहिंसा के मंत्र की यह सबसे बड़ी जीत थी जहां पांच सैकड़ा से अधिक हिंसक बागियों का हृदय परिवर्तन कराकर उन्हें अपने किये का पश्चाताप करने के लिये मजबूर कर दिया। जबकि इससे पहले माना जाता था कि बागी किसी की नहीं सुनते उनका अपना कानून ही अपना इंसाफ है। चम्बल में हुए बागी समर्पण के एतिहासिक चमत्कार से दुनियां हमें एक बार फिर गांधीवाद की ताकत प्रतिष्ठापित हुई। चम्बल में विकास के नये युग का आगाज भाई जी के इन प्रयासों ने चम्बल को शांति का नया पथ प्रशस्त तो किया ही इसके साथ ही उसके विकास के नये अध्याय की शुरूआत भी हुई। विकास की दौड़ में अपेक्षाकृत पिछड़े चम्बल अंचल में विकास यात्रा का प्रारम्भ सरकारों का मोहताज नहीं रहा भाई जी के प्रयासों से अंचल में सैकड़ों की संख्या में लगे दीर्घकालिक युवा शिविरों मंे आये देशभर के नौजवानों ने भाई जी की प्रेरणा से अपने हाथों में कुदाली फावड़ा उठाकर ग्रामीणों के साथ पसीना बहाते हुए चम्बल के श्रृंगार का नया वीणा उठाया। श्रृद्वेय भाई जी एवं उनके सहयोगियों से मिली जानकारी के अनुसार इनमें से कई शिविर तो छह महीने से एक बर्ष की अवधि के होते थे। भाई जी के निर्देशन में चलने बाले युवा शिविरों ने चम्बल की विकास यात्रा के नये युग का आगाज किया तो इन्हीं शिविरों में से भाई जी की सेवा की मशाल को मजबूती के साथ थामकर चलने बाले राजगोपाल पी.व्ही.राजूभाई,सहित चम्बल से डा.रनसिंह परमार, महेशदत्त मिश्र,जयसिंह भाई,प्रफुल्ल भाई,डोंगर भाई,शीतल भाई जैसे समर्पित सेवानिष्ठ युवाओं का सक्षम नेतृत्व भी सामने आया। जो आज भाई जी के बाद उनकी मजबूत बिरासत को आगे ले जाने का सक्षम प्रयास कर रहा है। शिविरों में देशभर और कभी-कभी विदेशों से आये नौजवानों को श्रमदान कर सड़क,पुल,रपटा,नाली और साफ-सफाई करते देखना अंचल के लोगों के लिये अनूठा अनुभव था। विदेश और देश के दूरदराज हिस्सों से आये नौजवनों के साथ ग्रामीण भी श्रमदान कर अपने गांव की तकदीर लिखने लगे। ग्रामीण बाहर से आने बाले शिविरार्थियों को मेहमान का दर्जा देते थे। सदैब ़ऋणी रहेगी चम्बल परिस्थितियों बस सामाजिक जीवन से भटके चम्बल के बागी बेटों को गांधीवाद के आदर्शों का पाठ पढ़ाकर उनका आत्म समर्पण जैसा कार्य भाई जी के अथक प्रयासों से ही संभव हो सका। भाई जी द्वारा महज दो बर्ष पूर्व जौरा में स्थापित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा के आंगन में जयप्रकाश नारायण एवं प्रभावती देवी सहित तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व.प्रकाश चन्द्र सेठी सहित कई बिशिष्टजनों की उपस्थिति में 14 अप्रेल 1972 से प्रारम्भ हुए बागी समर्पण के अनुष्ठान ने चम्बल अंचल की तकदीर ही नहीं बदली अपितु जौरा जैसे छोटे स्थान को विश्व पटल पर पहचान दिलाकर एसी प्रतिष्ठा प्रदान की जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। बागी समर्पण के असंभव से कार्य को सहजता से पूरा कर भाई जी ने अंचल में ब्याप्त हिंसा के स्याह अंधेरों को मिटाकर शांति अहिंसा की नई इबारत लिखने बाले भाई जी ने बागियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल कर सचमुच एक एतिहासिक पुनीत कार्य किया है। बागी आत्म समर्पण के उपरांत श्रम शिविरों के माध्यम से विकास की पटकथा लिखकर उसके विकास के नये युग का सूत्रपात किया। भाई जी के कृतित्व को यू ंतो समूची दुनियां सम्मान के साथ स्मरण करती हैं लेकिन चम्बल की धरती इसके लिये भाई जी के प्रति सदैब कृतज्ञ रहेगी। मुझे लगता है कि चम्बल की अगाध जलधारा बागी समर्पण के एतिहासिक कृतित्व के बाद भाई जी के सम्मान में उपरोक्त पंक्तियों को गाती हुई अपनी यात्रा जारी रखे है। नगरी नगरी फिरा मुसाफिर घर का रस्ता भूल गया क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया जय जगत जगदीश शुक्ला पत्रकार एवं स्वतंत्र लेखक
