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जिनपिंग ने अपनी सेना को बना दिया मानसिक रोगी ! भारत कारण खौफ और टेंशन में जी रहे चीनी सैनिक

बीजिंगः वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत, दक्षिण चीन सागर और ताइवान पर अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव से चीनी सेना टेंशन व खौफ में है। इस कारण चीन की सेना को मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ रहा है। बीते महीने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा प्रकाशित पीएलए डेली की रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि कुछ चीनी अधिकारी और सैनिक गहन युद्ध प्रशिक्षण में तनावग्रस्त पाए गए थे। इस रिपोर्ट में यह जिक्र किया गया कि PLA सैनिकों को यह सीखने की जरूरत है कि युद्ध क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए दबाव से कैसे निपटा जाए।

हांगकांग स्थित समाचार पत्र साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने सैनिकों को उनके काम के तनाव से निपटने और युद्ध में सामना करने में मदद करने के लिए परामर्श सेवाएं, नियमित मूल्यांकन और पाठ्यक्रम पेश किए हैं।” भारतीय रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि यह कुछ-कुछ मानसिक संकट जैसा था। LAC पर चल रहे संकट के कारण चीनी सैनिकों को भारी तनाव का सामना करना पड़ रहा है। द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सेना के अत्यधिक ठंड और बेहद ऊंचाई वाले ठिकानों पर तैनात होने के कारण उनकी बेहतर चिकित्सा जांच और ठीक से देखभाल नहीं हो पा रही है।

चीनी सैनिक एक जगह टिक कर ड्यूटी नहीं कर पाते क्योंकि विषम परिस्थितियों में उनकी लंबे समय तक तैनाती से शारिरिक स्वास्थ्य संकट गहरा सकता है। लेकिन इस जरूरी रोटेशन पॉलिसी से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हुड्डा (सेवानिवृत्त) ने इस रिपोर्ट पर सहमति जताते हुए कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पीएलए सैनिक तनाव और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

डी एस हुड्डा ने द प्रिंट से बात करते हुए कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खुद कहा था कि उनकी सेना “शांति रोग” से ग्रस्त है, जो मूल रूप से युद्ध के अनुभव की कमी है। दरअसल चीनी सैनिक, भारतीय सैनिकों की तुलना में कम अनुभवी हैं। उन्हें लंबे समय तक वास्तविक युद्ध परिस्थियों से जूझने का अनुभव नहीं मिला है। चीनियों को इतनी अधिक ऊँचाई वाली परिस्थितियों में कभी तैनात नहीं किया गया है और इसलिए ये मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं। उन्होंने कहा कि एक बच्चे की नीति, भर्ती और चीन में युवा आबादी में कमी जैसे कई कारकों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है।

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