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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 2000 किलोमीटर का सफर तय कर कन्याकुमारी से महाराष्ट्र होते हुए मध्यप्रदेश पहुंची अपने खर्चे पर साथ में पैदल चल रहे हैं ग्वालियर के दंपति
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 2000 किलोमीटर का सफर तय कर कन्याकुमारी से महाराष्ट्र होते हुए मध्यप्रदेश पहुंच गई है। यात्रा में 119 भारत यात्री रजिस्टर्ड हैं। ये कन्याकुमारी से कश्मीर तक का सफर पूरा करेंगे। MP के भी 8 युवा भारत यात्री के तौर पर चल रहे हैं। इस यात्रा में ग्वालियर के रहने वाले बुजुर्ग दंपती भी हैं, जो खुद के खर्च पर पदयात्रा कर रहे हैं। पति-पत्नी सड़क पर अटैची खींचते हुए कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा में जुड़े। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले दंपती ग्वालियर में प्राइवेट कॉलेज चलाते हैं। दोनों सवा तीन महीने पहले बेंगलुरु अपने बच्चों से मिलने गए थे, वहां भारत जोड़ो का कार्यक्रम घोषित हो गया। इसके बाद ये कन्याकुमारी पहुंचे और अब तक पैदल भारत की यात्रा कर रहे हैं। ग्वालियर के राकेश पांडेय (62) और उनकी पत्नी सीमा पांडेय (55) है उन्होंने कहा हमारी बेटी की शादी हो गई है। दामाद आईटी सेक्टर में है। बेटी वहीं क्लासिकल योगा टीचर है। बेटा भी बेंगलुरु में ही रहता है। बच्चों के साथ हम एक हफ्ते तक पूरे केरल में घूमे। लौटकर आए तो भारत जोड़ो यात्रा का अनाउंसमेंट हो गया। हमारे दिमाग में ये पहले से था कि हम इस यात्रा में जाएंगे, लेकिन हमें ये पता था कि 2 अक्टूबर से यात्रा शुरू होगी। जब समय से पहले यात्रा शुरू हो गई, तो हमने आपस में चर्चा की चलें क्या? हमने रिजर्वेशन कराया और कन्याकुमारी के लिए निकल पड़े। 5 सितंबर को कन्याकुमारी पहुंच गए। हम पहले इसलिए पहुंच गए, क्योंकि भारत जोड़ो के चयनित 119 यात्रियों में हमारा नाम नहीं था। उन्हीं चयनित भारत यात्रियों के लिए कंटेनर्स में स्थान तय थे। हमने पहले पहुंचकर ये सोचा कि कम से कम सामान रखने और रुकने का कुछ इंतजाम हो जाए। 6 सितंबर को सुबह पता लगा कि दिग्विजय सिंह वहां आने वाले हैं। वे पास के अन्ना रिसॉर्ट में रुके हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी उनसे मिलने पहुंचे। वहां दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश सहित कई सीनियर नेता बैठे थे। हमने उन्हें अपनी बात बताई तो सबने सद्भावना पूर्वक हमारी बात सुनी। दिग्विजय सिंह के पहले हम भारत जोड़ो टीम के कई लोगों को यह बात बता चुके थे कि हमारे रुकने का कुछ इंतजाम हो जाए। हम जब दिग्विजय सिंह से मिले, तब तक शायद हमारा मैसेज उन तक पहुंच चुका था। उन्होंने हमारी बात सुनकर तुरंत पहचान लिया। बोले- अरे पांडेय जी! आपके बारे में जानकारी है। हमने कहा कि हमें यात्रा में चलना है। आपकी तरफ से क्या मदद हो सकती है, वो बताइए। तो उन्होंने उस समय कहा कि हमारे पास तो कोई साधन नहीं है। अगर, आप जाना चाहते हैं तो अपने स्तर पर ही व्यवस्थाएं कीजिए। उस समय शायद दिग्विजय सिंह कोई आश्वासन देने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने कहा दो-तीन दिन चलकर देखिए, अगर कुछ व्यवस्था बनती है तो फिर देखेंगे। उन्हें लगता था कि दो-तीन दिन के अंदर ही यह या तो इन लोगों की हिम्मत टूट जाएगी या यह यात्रा के छोड़कर चले जाएंगे। हाथ में सूटकेस लेकर सड़क पर पदयात्रा पर निकल पड़े... राकेश बताते हैं, पत्नी तो ऐसी है कि लहसुन-प्याज भी नहीं खातीं। पहले दिन बहुत कठिन सी स्थिति हो गई। शाम को जैसे-तैसे एक होटल मिला। हम लोग वहां पर रुके और किसी तरह से पत्नी ने अचार के साथ रोटी खाकर और कॉफी पीकर गुजारा किया। राकेश बताते हैं, पत्नी तो ऐसी है कि लहसुन-प्याज भी नहीं खातीं। पहले दिन बहुत कठिन सी स्थिति हो गई। शाम को जैसे-तैसे एक होटल मिला। हम लोग वहां पर रुके और किसी तरह से पत्नी ने अचार के साथ रोटी खाकर और कॉफी पीकर गुजारा किया। खैर यात्रा शुरू हुई और हम लोग यात्रा में चल पड़े...। पहले दिन तो यह स्थिति थी कि हम दोनों पति-पत्नी हाथ में सूटकेस लेकर पैदल चले। सुबह-शाम की दोनों यात्राएं हम लोगों ने पूरी की। चूंकि, हमारे दोनों के सूटकेस में पहिए थे, तो हम दोनों लोग अपने सूटकेस को सड़क पर खींचते हुए यात्रा में चले आए। हमारे पहले दिन की यात्रा पूरी हुई, लेकिन हमारा कोई ठहरने का स्थान नहीं था। कुछ सहारा नहीं था, खाने-पीने का भी कोई इंतजाम नहीं था। मेरी पत्नी तो ऐसी है कि लहसुन-प्याज भी नहीं खातीं। पहले दिन बहुत कठिन सी स्थिति हो गई। शाम को जैसे-तैसे एक होटल मिला। हम लोग वहां पर रुके और किसी तरह से पत्नी ने अचार के साथ रोटी खाकर, कॉफी पीकर गुजारा किया। मैंने होटल में अपना खाना खाया और सो गए। हम यात्रा में चलते रहे। तेलंगाना के बाद तमिलनाडु, केरला, कर्नाटक जैसे राज्यों में खाने-पीने की पत्नी को ज्यादा समस्या हुई। महिलाएं व्रत करने में माहिर होती हैं, तो मेरी पत्नी ने तपस्या की तरह अपने पेट भरने की व्यवस्था बनाई। मैं तो होटल पर खा लेता हूं, लेकिन पत्नी के खाने का संकट रहता है, फिर भी उन्होंने मैनेज किया। केरल में भी रोज पूरी की पदयात्रा केरल में जहां यात्रा रुकती उसके बाद हमें बस या ऑटो रिक्शा से लौटकर अपने ठिकाने पर आना पड़ता। होटल तक आते-आते रात को 9-10 बज जाते थे। इसके बाद अगले दिन सुबह 3-4 बजे उठ कर नहा-धोकर तैयार होना, 5 बजे निकल जाना और 6 बजे अपनी यात्रा पर निकल पड़ते। कभी-कभी ऐसा लगता कि आज की यात्रा नहीं कर पाएंगे। लेकिन, ऐसा एक भी दिन नहीं हुआ, जब हमने अपनी दोनों समय की यात्रा पूरी न की हो। हर दिन हमने यात्रा पूरी की। कर्नाटक में पीसीसी से मिली वाहन की सुविधा केरल के बाद कर्नाटक आए, वहां भी काफी लंबा सफर था। यहां पर हमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) की तरफ से एक वाहन सुविधा मिल गई, तो काफी सहारा मिला। वाहन था तो होटल ढूंढने में सुविधा होती थी। तेलंगाना के अंदर यही क्रम चालू रहा और इसके बाद आंध्रा में भी ऐसे ही हालात रहे। तेलंगाना और आंध्रा में हमें वाहन सुविधा नहीं मिली, लेकिन वहां हमारे अंदर एक शक्ति पैदा हो गई थी कि कोई वाहन हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तेलंगाना यात्रा को भी पूरा किया। राकेश पांडेय बताते हैं, उनकी पत्नी 55 साल की हो गई हैं। मेरी उम्र भी 62 साल के करीब है, लेकिन इस यात्रा में चलने की शक्ति हमें ईश्वर से मिल रही है। इस यात्रा में भारत को समझने का मौका मिल रहा है। राकेश पांडेय बताते हैं, उनकी पत्नी 55 साल की हो गई हैं। मेरी उम्र भी 62 साल के करीब है, लेकिन इस यात्रा में चलने की शक्ति हमें ईश्वर से मिल रही है। इस यात्रा में भारत को समझने का मौका मिल रहा है। महाराष्ट्र में ठहरने का इंतजाम हो गया... महाराष्ट्र में जब पहले दिन हम पहुंचे तो वहां दूर-दूर तक कोई होटल और रुकने का ठिकाना नहीं था। अचानक एक पल के लिए ऐसा लगा कि बेसहारा से हो गए। कहां जाएं, क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर पता लगा कि भारत यात्रियों के कैंप में अतिरिक्त लोगों के लिए व्यवस्था होने लगी है। किसी एक मैरिज हॉल, गार्डन के कमरे में लोगों के रुकने की व्यवस्था होने लगी है। वहां गद्दे डालकर सोने की व्यवस्था की जा रही है। हम कैम्प साइट गए, तो हॉल के अंदर अच्छी व्यवस्था थी। नहाने-धोने के लिए भी हॉट वाटर शावर के साथ पर्याप्त व्यवस्था थी। हम वहां रुके, उस दिन हम लोग नहा धोकर हमने फ्रेश फील किया। सुबह 5 बजे ही नाश्ता मिल गया, वहां बस लगी हुई थी उसमें बैठकर यात्रा के स्थान पर पहुंचे। तीन-चार दिन हमने सुविधा का भरपूर लाभ उठाया। यात्रा में चलते-चलते कपड़े गंदे हो जाते हैं, कई व्यक्तिगत काम होते हैं, तो एक-दो दिन हम लोग नांदेड़ की होटल में रुके, फिर बाद में हिंगोली की एक होटल में रुके। अभी तीन-चार दिन से हम महाराष्ट्र के शेगांव के अंदर होटल में रुके हुए हैं। महाराष्ट्र की यात्रा खत्म हो गई है और अब 23 तारीख को मध्यप्रदेश में शुरू होगी। कह सकते हैं कि इस यात्रा में कठिनाइयां रही हैं, लेकिन हम परेशान नहीं हुए। इस यात्रा में भारत को समझने का मौका... राकेश पांडेय बताते हैं, उनकी पत्नी 55 साल की हो गई हैं। मेरी उम्र भी 62 साल के करीब है, लेकिन इस यात्रा में चलने की शक्ति हमें ईश्वर से मिल रही है। भारत को जोड़ने निकले राहुल गांधी की यात्रा में रोजाना 50 हजार से एक लाख लोग सड़कों पर मिल रहे हैं। हम कभी भारत को नहीं देख पाते, समझ पाते, लेकिन इस यात्रा में भारत को समझने का मौका मिल रहा है। 55 साल की सीमा पांडेय ग्रेजुएट हैं। राकेश पांडेय ग्रेजुएशन के बाद मुंबई यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। टेक्सटाइल इंडस्ट्री में नौकरी की। ग्वालियर की ग्रेसिम इंडस्ट्री में 13 साल नौकरी की। वर्तमान में ग्वालियर में निजी कॉलेज का संचालन कर रहे हैं। दिग्गी यात्रा के भीष्म... राकेश पांडेय ने कहा- मैं दिग्विजय सिंह के लिए कहना चाहता हूं कि शुरुआत में उनके पास हमारे लिए साधन नहीं थे, लेकिन बीच में वो हमें जब भी मिले, तो पूरे प्रेम उत्साह से मिले। उन्होंने कुछ दिन बाद हमारे लिए कैम्प में खाने-पीने, ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की। पास भी दिलवाए। बिल्कुल भीष्म पितामह की तरह इस यात्रा में दिग्विजय सिंह का रोल है। उनके चलने की रफ्तार गजब की है। एक दिन उन्हें जब मालूम चला कि हमें कहीं आसरा नहीं मिला और हमारा सामान एक गांव में पड़ा हुआ है, तो उन्होंने अपनी गाड़ी से हमें भेजा और कहा कि यदि होटल न मिले तो अपना सामान उठाकर लौटकर आइए, हम व्यवस्था करेंगे। हमें उस गांव में जगह नहीं मिली तो दिग्विजय सिंह ने हमारे रुकने का इंतजाम कराया। ये भी पढ़िए... राहुल गांधी बोले- हम मुंह बंद, कान खुले रखते हैं... कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में है। बुरहानपुर में बोदरली गांव में राहुल ने कहा- यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई है। विपक्ष के लोगों ने कहा था यात्रा लंबी है। पूरा नहीं किया जा सकता है। आपको बता दें, हम MP में 370 किमी चलेंगे। श्रीनगर में तिरंगे को लहराएंगे। यात्रा का लक्ष्य- जो नफरत, हिंसा और डर हिंदुस्तान में फैलाया गया है, उसके खिलाफ ये यात्रा है। उसके खिलाफ लड़ना है
