लालू यादव का हर दांव फेल, नीतीश की प्लानिंग के सामने RJD ने डाले हथियार

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार के साथ सरकार में बने रहने की बात की हवा उसी दिन निकल गई थी जिस दिन नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर सारी ताकत को अपने हाथों में ले लिया था. आरजेडी कैंप के लिए वो दिन एक बड़े झटके के समान था इसलिए तेजस्वी यादव इस कदर प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपना तय विदेश दौरा कैंसिल कर दिया था.
अब लालू प्रसाद कोशिश कर थक चुके हैं, लेकिन उनकी दाल गलती हुई नहीं दिख रही है. जेडीयू में टूट की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है. वहीं कांग्रेस टूट के मुहाने पर खड़ी है.
कांग्रेस में टूट की संभावना की खबर कितनी पुख्ता?
कांग्रेस के 19 विधायक हैं, जिनमें बड़ी संख्या टूटने को तैयार है. सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी एक तरफ बिहार में प्रवेश करेंगे, दूसरी तरफ उन्हें इंडिया गठबंधन कांग्रेस में टूट कराकर झटका देने की तैयारी कर ली गई है. ऐसे में आरजेडी ने कांग्रेस के बड़े नेताओं से बात कर कांग्रेस को टूटने से बचाने को लेकर मशक्कत करने की सलाह दे दी है, लेकिन आरजेडी का एक बड़ा धड़ा मानता है कि नीतीश कुमार के इस्तीफा देने के बाद से ही सारा खेल पलट जाएगा और नए स्पीकर के चुनाव के बाद आरजेडी और कांग्रेस एनडीए को अपनी रणनीति लागू करने से रोक नहीं पाएगी.
जाहिर है आरजेडी कैंप में इस बात को लेकर मायूसी है. लालू प्रसाद भले ही सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करें, लेकिन आरजेडी कैंप अपनी हार तय मान रहा है. यही वजह है कि बक्सर नीतीश कुमार एक सरकारी कार्यक्रम में अकेले गए हैं, लेकिन उनके साथ तेजस्वी यादव तय कार्यक्रम के बावजूद वहां नहीं पहुंचे.
फिलहाल आरजेडी और उसके घटक दल कांग्रेस, लेफ्ट समेत एआईएमआईएम के एक विधायक को मिलाकर विधायकों की संख्या 115 है और सरकार बनाने के लिए महज 7 विधायकों की जरूरत है, लेकिन आरजेडी अगर जेडीयू के विधायकों को तोड़ने की पहल करती है तो फौरन कांग्रेस में टूट कराकर लालू प्रसाद के कैंप को जवाब देने की तैयारी कर ली गई है.
नीतीश ने जेडीयू में टूट को रोकने की क्या की थी पूरी तैयारी?
नीतीश कुमार सजग थे और इस बार उनका अपने विधायकों के मूड को भांपने का तरीका बिल्कुल अलग था. पिछली बार वो खुद एक एक विधायक से मिलकर एनडीए से अलग होने के लिए रायशुमारी करते देखे गए थे, लेकिन इस बार उन्होंने अपने भरोसेमंद नेताओं को लगाकर एक-एक विधायक से फीडबैक लेने का काम किया है. सूत्रों के मुताबिक, अशोक चौधरी, संजय झा सहित कुछ और अन्य नेता अलग-अलग तरीके से विधायकों से बात कर नीतीश कुमार को एक-एक विधायक के मंतव्यों से परिचय करा रहे थे. ऐसे में विधायकों को इसका अहसास भी नहीं हो सका कि नीतीश कुमार सोच क्या रहे हैं.
वहीं, नीतीश कुमार अपनी पार्टी को बचाते हुए एनडीए में जाने का अपना मार्ग प्रशस्त करते रहे हैं. जाहिर है इस कवायद में आरजेडी के साथ सरकार में बने रहने के दो सबसे बड़े पैरोकार ललन सिंह और विजयेंद्र यादव को भी नीतीश कुमार ने भली भांती मना लिया था इसलिए जो ललन सिंह बीजेपी के खिलाफ जहर उगलने का काम कर रहे थे वो कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी के अवसर पर उनको भारत रत्न दिए जाने की वजह से केंद्र सरकार को धन्यवाद ज्ञापन करते सुने गए थे. कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी को जेडीयू और आरजेडी अलग-अलग 24 जनवरी को मना रही थी, लेकिन जेडीयू की सभा में बीजेपी के खिलाफ एक भी बड़े नेता ने बयान देने से परहेज किया था.
पीएम मोदी को कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए जेडीयू नेता खूब धन्यवाद करते देखे गए थे. बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने इसी सभा में धन्यवाद करते हुए एक बड़ा इशारा किया था, जिसमें उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने को लेकर धन्यवाद किया था. वहीं, दूसरी मांगों को मान लेने की गुजारिश भी की थी. ये दूसरी मांग विशेष सहायता पैकेज को लेकर है, जो नीतीश कुमार बिहार के पिछड़ेपन के मद्देनजर केंद्र से आंध्र प्रदेश की तर्ज पर चाहते हैं.
कहा जा रहा है कि पीएम मोदी दो बार बिहार की यात्रा इसी वजह से कैंसिल कर रहे थे. इस बार बिहार में 4 फरवरी को पीएम मोदी बिहार की यात्रा पर आएंगे, तो विशेष पैकेज की घोषणा कर सकते हैं. जेडीयू पीएम के इस घोषणा के बाद कह सकेगी कि बिहार की भलाई जेडीयू की पहली प्राथमिकता है. इसलिए जेडीयू ने पाला बदलकर बीजेपी के साथ चलने का मन बनाया है.
नीतीश ने क्यों इंडिया से अलग होने का बनाया मन?
इंडिया की चौथी बैठक के बाद नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग हटकर सरकार बनाने का फैसला कर लिया था. दरअसल इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में ममता और केजरीवाल ने मिलकर चेयरपर्सन के तौर पर मल्लिकार्जुन का नाम सामने रखा था, लेकिन लालू प्रसाद की तरफ से नीतीश कुमार का नाम प्रस्तावित नहीं किया गया था. कहा जाता है कि नीतीश इसी बैठक के बाद खासे नाराज हुए थे और राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाकर नीतीश कुमार ने जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह को हटाकर स्वयं अध्यक्ष पद ग्रहण कर लिया था.
29 दिसंबर की इस घटना के बाद जेडीयू के कई फैसले आरजेडी विरोधी दिखने शुरू हो गए थे. सरकारी विज्ञापनों में केवल नीतीश कुमार का दिखना और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का गायब होना गठबंधन में कुछ भी ठीक नहीं होने के प्रमाण दे रहा था. इसके बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी से बातचीत का सिलसिला नीतीश ने अपने करीबियों को सौंप दिया था, जिसमें संजय झा और केसी त्यागी का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है.
जेडीयू के साथ आने को लेकर बीजेपी क्यों हो गई है तैयार?
बीजेपी के लिए भी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना है. राम लहर के बावजूद बीजेपी जातिगत समीकरण को पुख्ता तौर पर अपने पक्ष में करना चाहती है. बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने कई सर्वे में पाया बीजेपी साल 2019 के आंकड़े से इस बार कहीं पीछे रहेगी. इसलिए पार्टी ने लोकल नेताओं से संपर्क कर मन बना लिया है कि नीतीश कुमार के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा जाए और 40 में से 40 सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी जीतने में सफल हो सकें.
कहा जा रहा है कि चिराग पासवान नीतीश के एनडीए में आने से खासे नाराज हैं, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व उनसे बात कर सारे मसलों को सुलझा लेंगे ये तय माना जा रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जेडीयू को बीजेपी ने साफ तौर पर इत्तला कर दिया है कि चिराग पासवान एनडीए में बने रहेंगे. इसलिए चिराग की कीमत पर बीजेपी किसी भी शर्त पर जेडीयू से कोई समझौता करने को तैयार नहीं होगी.
बीजेपी के एक बड़े नेता के मुताबिक, नीतीश को साथ लेने के पीछे इंडिया गठबंधन की एकजुटता की नैरेटिव को ध्वस्त करना है. वहीं हिन्दी बेल्ट में पर्सेप्शन के आधार पर बीजेपी विपक्षी दलों से चुनाव में उतरने से पहले ही जीत जाएगी ये तय माना जा रहा है.